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Showing posts from July, 2020

।। चंदन तिलक का महत्व ।।

💥📿चंदन तिलक का महत्त्व📿💥 〰〰🌼〰〰🌼〰〰 हमारे धर्मं में चन्दन के तिलक  का बहुत महत्व बताया गया है।  शायद भारत के सिवा और कहीं भी मस्तक पर तिलक  लगाने की प्रथा प्रचलित नहीं है। यह रिवाज अत्यंत प्राचीन है। माना जाता है कि मनुष्य के मस्तक के मध्य में विष्णु भगवान का निवास होता है, और तिलक ठीक इसी स्थान पर लगाया जाता है।   🌿भगवान को चंदन अर्पण 〰〰〰〰〰〰〰 भगवान को चंदन अर्पण करने का भाव यह है कि  हमारा जीवन आपकी कृपा से सुगंध से भर जाए तथा हमारा व्यवहार शीतल रहे यानी हम ठंडे दिमाग से काम करे। अक्सर उत्तेजना में काम बिगड़ता है। चंदन लगाने से उत्तेजना काबू में आती है। चंदन का तिलक ललाट पर या छोटी सी बिंदी के रूप में दोनों भौहों के मध्य लगाया जाता है। 🌿वैज्ञानिक दृष्टिकोण 〰〰〰〰〰〰 मनोविज्ञान की दृष्टि से भी तिलक लगाना उपयोगी माना गया है। माथा चेहरे का केंद्रीय भाग होता है, जहां सबकी नजर अटकती है। उसके मध्य में तिलक लगाकर, देखने वाले की दृष्टि को बांधे रखने का प्रयत्न किया जाता है।तिलक का महत्वहिन्दु परम्परा में मस्तक पर तिलक लगाना शूभ माना जाता है इसे सात्विकता का प्रतीक म...

वैदिक रक्षा सूत्र ।। राखी पर्व ।।

*#वैदिक_रक्षासूत्र* *रक्षासूत्र मात्र एक धागा नहीं बल्कि शुभ भावनाओं व शुभ संकल्पों का पुलिंदा है । यही सूत्र जब वैदिक रीति से बनाया जाता है और भगवन्नाम व भगवद्भाव सहित शुभ संकल्प करके बाँधा जाता है तो इसका सामर्थ्य असीम हो जाता है* *#कैसे_बनायें_वैदिक_राखी*  *💮वैदिक राखी बनाने के लिए एक छोटा-सा ऊनी, सूती या रेशमी पीले कपड़े का टुकड़ा लें । उसमें💮* *🍃(१) दूर्वा* *🍃(२) अक्षत (साबूत चावल)* *🍃(३) केसर या हल्दी* *🍃(४) शुद्ध चंदन* *🍃(५) सरसों के साबूत दाने* *💮इन पाँच चीजों को मिलाकर कपड़े में बाँधकर सिलाई कर दें । फिर कलावे से जोड़कर राखी का आकार दें । सामर्थ्य हो तो उपरोक्त पाँच वस्तुओं के साथ स्वर्ण भी डाल सकते हैं ।💮* *#वैदिक_राखी_का_महत्त्व* *💮वैदिक राखी में डाली जानेवाली वस्तुएँ हमारे जीवन को उन्नति की ओर ले जानेवाले संकल्पों को पोषित करती हैं ।💮* *🎋(१) #दूर्वा* *🏵जैसे दूर्वा का एक अंकुर जमीन में लगाने पर वह हजारों की संख्या में फैल जाती है, वैसे ही ‘हमारे भाई या हितैषी के जीवन में भी सद्गुण फैलते जायें, बढ़ते जायें...’ इस भावना का द्योतक है दूर्वा । दूर्वा गणेशजी की प...

व्रत या उपवास कितने प्रकार के होते हैं*.? ।। व्रत उपवास ।। शास्त्री जी

*व्रत या उपवास कितने प्रकार के होते हैं*.??? 〰️〰️🔸〰️〰️🔸🔸〰️〰️🔸〰️〰️ व्रत रखने के नियम दुनिया को हिंदू धर्म की देन है। व्रत रखना एक पवित्र कर्म है और यदि इसे नियम पूर्वक नहीं किया जाता है तो न तो इसका कोई महत्व है और न ही लाभ बल्कि इससे नुकसान भी हो सकते हैं। आप व्रत बिल्कुल भी नहीं रखते हैं तो भी आपको इस कर्म का भुगतान करना ही होगा। राजा भोज के राजमार्तण्ड में 24 व्रतों का उल्लेख है। हेमादि में 700 व्रतों के नाम बताए गए हैं। गोपीनाथ कविराज ने 1622 व्रतों का उल्लेख अपने व्रतकोश में किया है। व्रतों के प्रकार तो मूलत: तीन है:- 1. नित्य, 2. नैमित्तिक और 3. काम्य।   1.नित्य व्रत👉 उसे कहते हैं जिसमें ईश्वर भक्ति या आचरणों पर बल दिया जाता है, जैसे सत्य बोलना, पवित्र रहना, इंद्रियों का निग्रह करना, क्रोध न करना, अश्लील भाषण न करना और परनिंदा न करना, प्रतिदिन ईश्वर भक्ति का संकल्प लेना आदि नित्य व्रत हैं। इनका पालन नहीं करते से मानव दोषी माना जाता है।   2.नैमिक्तिक व्रत👉 उसे कहते हैं जिसमें किसी प्रकार के पाप हो जाने या दुखों से छुटकारा पाने का विधान होता है। अन्य किसी प्रकार के नि...

सोमवती अमावस्या ।।

सोमवती हरियाली अमावस्या पर सौभाय प्राप्ति का विशेष अवसर 〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️ सोमवार को पड़ने वाली अमावस्या को सोमवती अमावस्या कहा जाता है। सोमवार चंद्र देवता कों समर्पित दिन है,भगवन चंद्र को मन का कारक माना जाता है अतः इस दिन अमावस्या पड़ने का अर्थ है की यह दिन मन सम्बन्धित दोषो को दूर करने के लिए उत्तम है। हमारे शास्त्रो में चंद्रमा को ही दैहिक, दैविक और भौतिक कष्टो का कारक माना जाता है,अतः यह पूरे वर्ष में एक या दो बार ही पड़ने वाले पर्व का बहुत अधिक महत्त्व माना जाता है। विवाहित स्त्रियों के द्वारा इस दिन पतियों की दीर्घ आयु के लिये व्रत का विधान है। सोमवती अमावस्या कलयुग के कल्याणकारी पर्वो में से एक है, लेकिन सोमवती अमावस्या को अन्य अमावस्याओं से अधिक पुण्य कारक मानने के पीछे भी पौराणिक एवं शास्त्रीय कारण है। सोमवार को भगवन शिव एवं चंद्र का दिन माना जाता है। सोम यानि चन्द्रमा अमावस्या और पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा यानि सोमांश या अमृतांश सीधे-सीधे पृथ्वी पर पड़ता है। शास्त्रो के अनुसार सोमवती अमावस्या के दिन चन्द्रमा का अमृतांश पृथ्वी पर सबसे अधिक पड़ता है। अमावस्या अमा और व...

तर्पण विधि ।।

तर्पण विधि 〰️🔸〰️ (देव, ऋषि और पितृ सम्पूर्ण तर्पण विधि) 〰️〰️🔹〰️〰️🔸🔸 〰️〰️🔹〰️〰️ ।।ॐ अर्यमा न त्रिप्य्ताम इदं तिलोदकं तस्मै स्वधा नमः।...ॐ मृत्योर्मा अमृतं गमय।। पितरों में अर्यमा श्रेष्ठ है। अर्यमा पितरों के देव हैं। अर्यमा को प्रणाम। हे! पिता, पितामह, और प्रपितामह। हे! माता, मातामह और प्रमातामह आपको भी बारंबार प्रणाम। आप हमें मृत्यु से अमृत की ओर ले चलें। क्या है तर्पण 〰️🔹🔸〰️ पितरों के लिए श्रद्धा से किए गए मुक्ति कर्म को श्राद्ध कहते हैं तथा तृप्त करने की क्रिया और देवताओं, ऋषियों या पितरों को तंडुल या तिल मिश्रित जल अर्पित करने की क्रिया को तर्पण कहते हैं। श्राद्ध पक्ष का माहात्म्य उत्तर व उत्तर-पूर्व भारत में ज्यादा है। तमिलनाडु में आदि अमावसाई, केरल में करिकडा वावुबली और महाराष्ट्र में इसे पितृ पंधरवडा नाम से जानते हैं। 'हे अग्नि! हमारे श्रेष्ठ सनातन यज्ञ को संपन्न करने वाले पितरों ने जैसे देहांत होने पर श्रेष्ठ ऐश्वर्य वाले स्वर्ग को प्राप्त किया है वैसे ही यज्ञों में इन ऋचाओं का पाठ करते हुए और समस्त साधनों से यज्ञ करते हुए हम भी उसी ऐश्वर्यवान स्वर्ग को प्राप्त करें।...

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की कथा ।।शिव ।।

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की कथा। 〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️ कथा के अनुसार भगवान शंकर के दोनों पुत्रों में आपस में इस बात पर विवाद उत्पन्न हो गया कि पहले किसका विवाह होगा. जब श्री गणेश और श्री कार्तिकेय जब विवाद में किसी हल पर नहीं पहुंच पायें तो दोनों अपना- अपना मत लेकर भगवान शंकर और माता पार्वती के पास गए। अपने दोनों पुत्रों को इस प्रकार लडता देख, पहले माता-पिता ने दोनों को समझाने की कोशिश की. परन्तु जब वे किसी भी प्रकार से गणेश और कार्तिकेयन को समझाने में सफल नहीं हुए, तो उन्होने दोनों के समान एक शर्त रखी। दोनों से कहा कि आप दोनों में से जो भी पृथ्वी का पूरा चक्कर सबसे पहले लगाने में सफल रहेगा. उसी का सबसे पहले विवाह कर दिया जायेगा.  विवाह की यह शर्त सुनकर दोनों को बहुत प्रसन्नता हुई. कार्तिकेयन का वाहन क्योकि मयूर है, इसलिए वे तो शीघ्र ही अपने वाहन पर सवार होकर इस कार्य को पूरा करने के लिए चल दिए। परन्तु समस्या श्री गणेश के सामने आईं, उनका वाहन मूषक है., और मूषक मन्द गति जीव है. अपने वाहन की गति का विचार आते ही श्री गणेश समझ गये कि वे इस प्रतियोगिता में इस वाहन से नहीं जीत सकते। श्...

त्रिपुंड और तिलक किसे कहते है ।। शिव ।।

त्रिपुंड और तिलक किसे कहते है तथा किस दिन किस का तिलक लगये और इस में कौन कौन देवता निवास करते है !! 〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️ ज्योतिष के अनुसार यदि तिलक धारण किया जाता है तो सभी पाप नष्ट हो जाते है सनातन धर्म में शैव, शाक्त, वैष्णव और अन्य मतों के अलग-अलग तिलक होते हैं।  ललाट अर्थात माथे पर भस्म या चंदन से तीन रेखाएं बनाई जाती हैं उसे त्रिपुंड कहते हैं। भस्म या चंदन को हाथों की बीच की तीन अंगुलियों से लेकर सावधानीपूर्वक माथे पर तीन तिरछी रेखाओं जैसा आकार दिया जाता है।  शैव संप्रदाय के लोग इसे धारण करते हैं। शिवमहापुराण के अनुसार त्रिपुंड की तीन रेखाओं में से हर एक में नौ-नौ देवता निवास करते हैं। त्रिपुंड के देवताओ के नाम इस प्रकार हैं- 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ 1- अकार, गार्हपत्य अग्नि, पृथ्वी, धर्म, रजोगुण, ऋग्वेद, क्रियाशक्ति, प्रात:स्वन तथा महादेव- ये त्रिपुंड की पहली रेखा के नौ देवता हैं। 2- ऊंकार, दक्षिणाग्नि, आकाश, सत्वगुण, यजुर्वेद, मध्यंदिनसवन, इच्छाशक्ति, अंतरात्मा और महेश्वर- ये त्रिपुंड की दूसरी रेखा के नौ देवता हैं। 3- मकार, आहवनीय अग्नि, परमात्मा, तमोगुण, ...

શિવ પૂજા // શાસ્ત્રીજી ભાવનગર//

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#शिव_नैवेद्य_ग्राह्य_अथवा_अग्राह्य ? आज कल कई मित्र समुदाय पूछते हैं कि शिव नैवेद्य ग्रहण करना चाहिए कि नही तो वैसे शिव नैवेद्य ग्रहण के बारेमे कई भेद मिलते हैं तो आज श्रीशिवमहापुराण से थोडी जानकारी ग्रहण करे  श्री शिव पुराण मे कहा गया है - *रोगं हरति निर्माल्यं शोकं तु चरणोदकं।* *अशेष पातकं हन्ति शम्भोर्नैवेद्य भक्षणम् ।।* भगवान् शिव का निर्माल्य समस्त रोगों को नष्ट कर देता है । चरणोदक शोक नष्ट कर देता है तथा शिव जी का नैवेद्य भक्षण करने से सम्पूर्ण पाप विनष्ट हो जाते हैं । इतना ही नहीं शिव जी के नैवेद्य प्रसाद का दर्शन करने मात्र से पाप दूर भाग जाते हैं और शिव का नैवेद्य ग्रहण करने से खाने से करोड़ों पुण्य प्रसाद ग्रहण करने वाले मनुष्य मे समा जाते हैं । *दृष्ट्वापि शिवनैवेद्यं यान्ति पापानि दूरतः।* *भुक्ते तु शिव नैवेद्ये पुण्यान्यायान्ति कोटिशः ।।* जो भक्त शिव मन्त्र से दीक्षित हैं वे समस्त शिव लिङ्गों पर चढ़े हुये प्रसाद को खाने के अधिकारी हैं क्यों कि शिव भक्त के लिये शिव नैवेद्य शुभदायक महाप्रसाद है । *शिव दीक्षान्वितो भक्तो महाप्रसाद संज्ञकम् ।* *सर्वेषामपि लिङ्ग...

शिवलिंग में लिंग ऊपर क्यों निकला होता है ?।।

शिवलिंग में लिंग ऊपर क्यों निकला होता है ? 〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️ शिवलिंग हिन्दुओं में सर्वाधिक पूजित धार्मिक प्रतीक चिन्ह हैं और इसकी पूजा विश्व के हर धर्म में ,विश्व में हर जगह किसी न किसी रूप में होती जरुर है अतः यह विश्व में सर्वाधिक पूजित किया जाने वाला भी प्रतीक है। हर कोई इसे पूजता जरुर है पर 99 पतिशत लोग इसके न वास्तविक अर्थ को जानते हैं न और न ही इसके रहस्य को समझ पाते हैं। यहाँ तक की जो पुजारी हैं ,धार्मिक व्यक्ति हैं ,विद्वान् और समझदार हैं वह भी इसके वास्तविक रहस्य को नहीं समझ पाते। अधिकतर लोग इसे योनी -लिंग अथवा शिव -पार्वती का प्रतीक समझते हैं और शिव -पार्वती मानकर ही इसकी पूजा करते हैं तो ऐसे लोग यह कैसे समझ सकते हैं की शिवलिंग की पूर्ण आकृति में से लिंग -योनी से बाहर क्यों निकल रहा है ,इसे तो नियमतः योनी के अंदर जाते हुए होना चाहिए। आखिर लिंग मुख बाहर उल्टा उपर की ओर क्यों जा रहा है ,इसका रहस्य क्या है ,यह क्या कह रहा है ? क्या बताता है ? हम आपको इसका वास्तविक अर्थ बताते हैं और इसे जानकर आप भी हतप्रभ रह जायेंगे आप सोचेंगे इतनी गूढ़ बात आपने पहले क्यों नहीं सोची...

धर्म आचरण

🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩    *दानेन तुल्यं सुहृदास्ति नान्यो लोभाच्च नान्योऽस्ति रिपुः पृथिव्याम् !* *विभूषणं शीलसमं न चान्यत् सन्तोषतुल्यं धनमस्ति नान्यत् !!* 🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩    *भावार्थ : -दान के समान अन्य कोई सुहृद नहीं है और पृथ्वी पर लोभ के समान कोई शत्रु नहीं है ! शील के समान कोई आभूषण नहीं है और संतोष के समान कोई धन नहीं है !* 🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩             *There is no other character like donation and there is no enemy like greed on earth! There is no jewelery like majesty and there is no wealth like satisfaction!* 🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩        *आज का दिन सभी के लिए मंगलमय हो।* *🙏🌹🚩सुप्रभातम्🚩🌹🙏*

ऋषि परंपरा न जानना ।।

श्री  वेदव्यास  जी  द्वारा  रचित""श्लोकों""का  अर्थ  लगाने  में  तो  श्री गणेश  जी  को  भी  विचारना  पड़ता  था। परंतु  आजकल  के  लोग  चाय  पीते  पीते  पुराण  पढ़कर  अर्थ  लगा लेते हैं।उन्हें  विचार  करने या  समझने  की शायद  आवश्यकता  ही नही  है, तभी चहुओर अनर्थ  व्याप्त हो  रहा है नए  नए  गधे  पंजीरी  खाकर  स्वयं  को  विद्वान  सिद्ध  कर  रहे  हैं | छत्रपपुष्प  की  भांति  उपजते  सोसल  मीडिया  के  विद्वान  वर्षा  ऋतु  के  दादुर  की  तरह  जहाँ  देखो  बोलते  दिख  जाते  हैं| सोसल  मीडिया  पर  देख  सुनकर  लगता  है,  यह  भारत  भूमि  अब  वेदभूमि  में  परिवर्तित   हो  गयी  है। भाषा  भोजन  औ...

धर्म पालन हार।।

धर्म के पालन और आचरण में विघ्न ,सबसे बड़े आजकल के  माता पिता और घर के बड़े बूढ़े ही है , कारण हमने वस्तुतःऐसा देखा है  और आपने भी देखा ही होगा,  यदि बालक भगवान में मन लगाने का प्रयत्न करें  अथवा माथे पर  तिलक आदि भी लगाए तो तुरंत  ही माता पिता या घर के बड़े ,  कहने लगते हैं कि तुम पंडिताई  कर रहे हो, बहुत पूजा पाठ  कर रहे हो ब्राह्मण बनना है क्या? ,  अर्थात माता पिता ही अपना एवं  अपने पुत्र, व कुल के  कल्याण में विघ्न बनने का  प्रयत्न करते है माता पिता तो वो होने  चाहिए जो अपना और  अपने पुत्र कुल आदि का कल्याण  करे यही तो हमारी संस्कृति रही है  यदि कहे कि आजकल के माता पिता पुत्र के सच्चे हितैषी नही है तो गलत न होगा , अरे सच्चा हितैषी तो वह है। जो पुत्र कुल का पारलौकिक उत्कर्ष हेतु प्रेरित करे.  "ऋषभ सौ . होय, मात मंदालस मानौं । पुत्र कपिल सौ मिलै, मित्र प्रहलादहि जानौं ॥" "विदुर दयालु,जोषिताद्रुपद-दुलारी। मिलै, अकिंचन अकिंचन पर-उपकारी ॥" "भर्ता नृप अंवरीष सौ, राजा पृथु सौ जो मिलै । भगवत भवनिधि उद्धरै, ...

सूर्य - चंद्र ऊर्जा ।। शास्त्री जी।।

सूर्यऊर्जा और चंद्रऊर्जा । हारा केंद्र का रहस्य । ******************************************** तुमने कभी गौर किया, बाएं हाथ का उपयोग करने वाले लोगों को दबा दिया जाता है! अगर कोई बच्चा बाएं हाथ से लिखता है, तो तुरंत पूरा समाज उसके खिलाफ हो जाता है माता पिता, सगे संबंधी, परिचित, अध्यापक सभी लोग एकदम उस बच्चे के खिलाफ हो जाते हैं। पूरा समाज उसे दाएं हाथ से लिखने को विवश करता है। दायां हाथ सही है और बायां हाथ गलत है। कारण क्या है? ऐसा क्यों है कि दायां हाथ सही है और बायां हाथ गलत है? बाएं हाथ में ऐसी कौन सी बुराई है, ऐसी कौन सी खराबी है? और दुनिया में दस प्रतिशत लोग बाएं हाथ से काम करते हैं। दस प्रतिशत कोई छोटा वर्ग नहीं है। दस में से एक व्यक्ति ऐसा होता ही है जो बाएं हाथ से कार्य करता है। शायद चेतनरूप से उसे इसका पता भी नहीं होता हो, वह भूल ही गया हो इस बारे में, क्योंकि शुरू से ही समाज, घर परिवार, माता पिता बाएं हाथ से कार्य करने वालों को दाएं हाथ से कार्य करने के लिए मजबूर कर देते हैं। ऐसा क्यों है? दायां हाथ सूर्यकेंद्र से, भीतर के पुरुष से जुड़ा हुआ है। बाया हाथ चंद्रकेंद्र से भीतर की ...

शिव की पूजा के बारे मैं।। शास्त्री जी ।। हर महादेव

मनोकामनाओं की पूर्ति के लिये श्रावण मास मे भगवान शिव की पूजा की विधियाँ - 1 :- विवाह के लिये श्रावण में स्त्रियों के लिये शिव पूजन विधि - - त्रयम्बक शिव के मंत्र "ॐ त्रयम्बकं यजामहे सुगंधिम पतिवेदनम , उर्वारुकमिव बंधनादितो मुक्षीय मामुतः !!" का जप करें तो वांछित वर की प्राप्ति होती है। 2 :- धन प्राप्ति के लिये श्रावण मास में शिव पूजन विधि - - "ॐ जूं सः" इस त्रयक्षरी मृत्युंजय मंत्र के दस हजार जप करते हुए शिवलिंग या शिवजी की मूर्ति का अभिषेक गन्ने के रस से करें । - भगवान शिव के ऊपर अखंडित चावल चढाने से लक्ष्मी की वृद्धि होती है. 3 :- स्मृति बढ़ाने के लिये श्रावण मास में शिव पूजन - - स्मृति, बुद्धि तथा ज्ञानादि बढ़ाने के लिये दक्षिणामूर्ति शिव के मंत्र का जप करें । दक्षिणामूर्ति शिव का वास वट वृक्ष की जड़ में होता है ...इसलिये यदि वट वृक्ष के नीचे बैठकर इसका जप करें तो स्मरण शक्ति, बुद्धि एवं ज्ञान शीघ्र बढ़ेंगे "ॐ नमो भगवते दक्षिणामूर्तये मह्यं मेधां प्रज्ञां प्रयच्छ स्वाहा " 4 :- शर्करा मिश्रित दूध की धार से मृत्युंजय मंत्र से शिवलिंग का अभिषेक करने से स्म...

પાપી કભી હરિ નામ નહિ લે સકતા

*🚩जय श्री सीताराम जी की*🚩 *वाल्मीकिजीको अल्पप्राणवाला  नाम  भी  क्यों  नहीं  आया ? कारण क्या  था ? घ्यान  दें ! राम  नाम  उच्चारण करनेमें  सुगम हैं ;  परंतु  जिसके  पाप अघिक हैं, उस  पुरूष--द्वारा नाम--उच्चारण  कठिन हो जाता है ।  एक कहावत है----*_ *मजाल  क्या  है  जीव की,* *जो   राम-नाम लेवे।* *पाप देवे  थाप  की,* *जो  मुण्डो  फोर  देवे ॥*   *जिनका  अल्प पुण्य  होता है वे  राम नाम  ले ही नहीं सकते।* *श्रीमद्भगवद्गीतामें भी आया है* *येषां  त्वन्तगतं पापं जनाना    पुण्यकर्मणाम् ।* *ते   द्वन्द्वमोहनिर्मुक्ता  भजन्ते   मा  दृढव्रता: ॥* *जिनके  पाप नष्ट हो  गये हैं,  वे ही  दृढ़व्रत होकर  भगवानके  भजनमें  लग सकते हैं । राम नामके  विषयमें भी ऐसी  ही बातें  शास्त्रोंमें  पढ़ते हैं, संतोंसे सुनते है । ऐसी  ही हमने एक घटना सुनी है-* *बाँकु...

હનુમાન જી કે ગુરુ સૂર્ય દેવ

💐#सूर्य_भगवान_हनुमानजी_के_गुरु_थे💐 जुग सहस्त्र जोजन जो भानू। लील्यो ताहि मधुर फल जानू।। कलियुग में सबसे जल्दी प्रसन्न होने वाले देवताओं में से एक हैं हनुमानजी। इसी कारण आधुनिक युग में भी इनके भक्तों की संख्या अत्यधिक है। हनुमानजी को प्रसन्न करने का सरल और श्रेष्ठ उपाय है हनुमान चालीसा का पाठ करना। नित करोड़ों लोग इसका पाठ करते हैं फलतः यह एक सिद्ध मंत्र हो चुका है। हनुमान चालीसा सैकड़ों वर्ष पूर्व गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रची गई थी और उसी समय उन्होंने इसमें यह बता दिया था कि सूर्य और पृथ्वी के बीच लगभग कितनी दूरी है। जबकि विज्ञान अब बता रहा है कि सूर्य और पृथ्वी के बीच की दूरी 149,600,000 कि मी है।    हनुमान चालीसा में एक दोहा है:   जुग(युग)सहस्त्र जोजन(योजन)पर भानु। लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।   इस दोहे का सरल अर्थ यह है कि हनुमानजी ने एक युग सहस्त्र योजन की दूरी पर स्थित भानु यानी सूर्य को मीठा फल समझकर खा लिया था। हनुमानजी ने एक युग सहस्त्र योजन की दूरी पर स्थित भानु यानी सूर्य को मीठा फल समझकर खा लिया था।   एक युग = 12000 वर्ष एक सहस्त्र = 1000 एक योजन = 8 म...

શ્રાવણ માસ 1 અધ્યાય //shivarchna

श्रावण मास महात्म्य (पहला अध्याय) 〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️ श्रावण का सम्पूर्ण मास मनुष्यों में ही नही अपितु पशु पक्षियों में भी एक नव चेतना का संचार करता है जब प्रकृति अपने पुरे यौवन पर होती है और रिमझिम फुहारे साधारण व्यक्ति को भी कवि हृदय बना देती है। सावन में मौसम का परिवर्तन होने लगता है।प्रकृति हरियाली और फूलो से धरती का श्रुंगार देती है परन्तु धार्मिक परिदृश्य से सावन मास भगवान शिव को ही समर्पित रहता है। मान्यता है कि शिव आराधना से इस मास में विशेष फल प्राप्त होता है। इस महीने में हमारे सभी ज्योतिर्लिंगों की विशेष पूजा  ,अर्चना और अनुष्ठान की बड़ी प्राचीन एवं पौराणिक परम्परा रही है। रुद्राभिषेक के साथ साथ महामृत्युंजय का पाठ तथा काल सर्प दोष निवारण की विशेष पूजा का महत्वपूर्ण समय रहता है।यह वह मास है जब कहा जाता है जो मांगोगे वही मिलेगा। भोलेनाथ सबका भला करते है। धर्म प्रेमी सज्जनो एवं साधकगण के लिये हम आज से श्रावण माह के नित्य एक या दो अध्याय का पाठ पोस्ट करेंगे आशा है आप सभी इससे अवश्य लाभान्वित होंगे। ईश्वर सनत्कुमार संवाद में श्रावण मास के माहात्म्य का वर्णन 〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰...