ऋषि परंपरा न जानना ।।
श्री वेदव्यास जी द्वारा रचित""श्लोकों""का अर्थ लगाने में
तो श्री गणेश जी को भी विचारना पड़ता था।
परंतु आजकल के लोग चाय पीते पीते पुराण पढ़कर अर्थ लगा लेते हैं।उन्हें विचार करने या समझने की शायद आवश्यकता ही नही है, तभी चहुओर अनर्थ व्याप्त हो रहा है
नए नए गधे पंजीरी खाकर स्वयं को विद्वान सिद्ध कर रहे हैं |
छत्रपपुष्प की भांति उपजते सोसल मीडिया के विद्वान
वर्षा ऋतु के दादुर की तरह जहाँ देखो बोलते दिख जाते हैं|
सोसल मीडिया पर देख सुनकर लगता है, यह भारत भूमि अब वेदभूमि में परिवर्तित हो गयी है।
भाषा भोजन और परिधान का बोध नही -शिष्टाचार सदाचार और शौचाचार से कोशों दूर फिर भी आध्यात्म के मूर्धन्य विद्वान यहां यत्र तत्र सर्वत्र दृष्टव्य है ।।
||श्रीमदाचार्यचरणकमलेभ्योनम:||
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