धर्म पालन हार।।

धर्म के पालन और आचरण में विघ्न ,सबसे बड़े आजकल के
 माता पिता और घर के बड़े बूढ़े ही है ,
कारण हमने वस्तुतःऐसा देखा है 
और आपने भी देखा ही होगा,
 यदि बालक भगवान में मन लगाने का प्रयत्न करें 

अथवा माथे पर  तिलक आदि भी लगाए तो तुरंत 
ही माता पिता या घर के बड़े , 
कहने लगते हैं कि तुम पंडिताई 
कर रहे हो, बहुत पूजा पाठ
 कर रहे हो ब्राह्मण बनना है क्या? , 
अर्थात माता पिता ही अपना एवं
 अपने पुत्र, व कुल के 
कल्याण में विघ्न बनने का 
प्रयत्न करते है माता पिता तो वो होने 
चाहिए जो अपना और 
अपने पुत्र कुल आदि का कल्याण 
करे यही तो हमारी संस्कृति रही है 

यदि कहे कि आजकल के माता पिता पुत्र के सच्चे हितैषी नही है तो गलत न होगा , अरे सच्चा हितैषी तो वह है। जो पुत्र कुल का पारलौकिक उत्कर्ष हेतु प्रेरित करे. 

"ऋषभ सौ . होय, मात मंदालस मानौं ।
पुत्र कपिल सौ मिलै, मित्र प्रहलादहि जानौं ॥"
"विदुर दयालु,जोषिताद्रुपद-दुलारी।
मिलै, अकिंचन अकिंचन पर-उपकारी ॥"
"भर्ता नृप अंवरीष सौ, राजा पृथु सौ जो मिलै ।
भगवत भवनिधि उद्धरै, चिदानंद रस झिलमिलै ॥"
(भगवद रसिक जी)

पिता ऋषभदेव जैसा होना चाहिए, उनके सौ पुत्र थे और उन्होंने
सभी को अध्यात्म में मोड़ दिया, सबको भगवान् के पास पहुंचा दिया,
ऐसा पिता होना चाहिए, पिता वह नहीं है जो धन-संपत्ति देकर आँख
फोड़ रहा है। इसी तरह माँ मंदालसा जैसी होनी चाहिए, उसकी प्रतिज्ञा
थी 

कि मेरी कोख में जो बच्चा आया है वह फिर किसी स्त्री के कोख में
नहीं जाएगा, अर्थात् वह इसी जन्म में मुक्त हो जायेगा, इसलिए माँ ऐसी
होनी चाहिए। पुत्र कपिलदेव जैसा होना चाहिए, उन्होंने अपनी माँ
देवहूति को उपदेश देकर भवसागर से मुक्त कर दिया। 

मित्र प्रह्लाद जैसा होना चाहिए, जिसने सभी असुर बालकों से कहा कि यह आसुरी विद्या
नहीं पढ़ो, यह जितनी भी संसारी पढ़ाई है अंग्रेजी, गणित आदि ये सब
आसुरी विद्या है, सच्ची पढ़ाई है भगवान् का गुणगान करना।

अन्य युगों की अपेक्षा कलयुग में भगवत प्राप्ति सहज है आवश्यकता है दृण निश्चय की , प्रेम भाव की शाश्त्रो का स्पष्ट वचन है 

सुनहु तात माया कृत गुन अरु दोष अनेक। गुन यह उभय न देखिअहि देखिअ सो अबिलेक ॥ (मानस ७ । ४१ )
गुणदोषदृशिर्दोषो
 अग्निहोत्रं गवालम्भ सन्यासं पलपैतृकम् । देवराच सुतोत्पतिः कलौ पञ्च विवर्जयेत् ॥
 यत्कृते
'जो फल सत्ययुगमें दस वर्ष तपस्या, ब्रह्मचर्य, जप आदि करनेसे मिलता है, उसे मनुष्य त्रेतामें एक वर्ष, द्वापरमें एक मास और कलियुगमें
केवल एक दिन-रातमें प्राप्त कर लेता है।

गुणस्तूभयवर्जितः' (श्रीमद्भा० ११ । १९ । ४५)
दशभिर्व्षैस्रेतायां
हायनेन तत् । द्वापरे तथ्च मासेन हयहोरात्रेण तत्कलो ॥ (विष्णुपुराण ६ २ । १५ )

कलिजुग सम जुग आन नहि जो नर कर विस्वास । गाइ राम गुन गन बिमल भव तर बिनहिं प्रयास ।। (मानस ७। १०३ क)

 मग्रोऽथ जाह्वीतोयादुत्थायाह सुतो
तेषां मुनीनां भूयश्च ममज्ज
निममश्च
मम। शूद्रस्साधुः कलिस्साधुरित्येवं शृण्वतां क्चः ॥
स नदीजले । साधु साध्विति चोत्थाय शूद्र धन्योऽसि चाबवीत् ॥
समुत्थाय पुनः प्राह महामुनिः । योषितः साधु धन्यास्तास्ताभ्यो धन्यतरोऽस्ति कः ॥ (विष्णुपुराण ६ २ । ६-८)

शास्त्री जी भावनगर
९५१०७१३८३८

Comments

Popular posts from this blog

Bhavnagar social work hindu worker

पहलगाम, जम्मू-कश्मीर में हुए आतंकी हमले की कड़ी निंदा

Sadhvi Saraswati’s Emergency Warning: A Sudden ‘Predestined Attack’ Could Strike the Hindu Community news update