शंकराचार्य जी
shashtriji *आचार्य मंडनमिश्र के साथ भगवान आदि शंकराचार्य का शास्त्रार्थ पुर्व कटाक्ष वार्तालाप* मंडनमिश्रा :- "मैं जानता हूँ कि सबकुछ छोड़कर लोग बाबाजी कब बनते हैं , या तो विवाह के लिये कोई सुन्दर कन्या मिली नहीं होगी या फिर स्वयं सोचा होगा कि घर-गृहस्थी का झंझट कौन पाले ! एक तो पत्नी का भरण-पोषण की जिम्मेदारी फिर उसकी रक्षा करना और जब बाल-बच्चे हो तो उनकी भी जिम्मेदारी लेनी पड़ेगी । यही सब सोचकर आलस्य में आपने पुस्तकों का भार छाती पर लादकर खूब विद्वानों को शास्त्रार्थ में हराया , कई राजाओं को प्रभावित करके अपना शिष्य बनाया और अपनी ब्रह्मनिष्ठता भी क्या खूब प्रमाणित की ।" ---- गर्व में भरकर मण्डन मिश्र ने आचार्य शंकर के सम्मुख यह बातें कही । आचार्य शंकर ने सहज भाव से कहा --- "मुझे आलसी क्यों कहते हो ? जबकि आलसी तो आप प्रतीत होते हो । गुरुकुल में समझ लिया कि गुरुदेव की आजीवन सेवा करने में ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए गुरुजी के अनुशासन में रहना होगा ; सांसारिक सुख-भोगों से दूर रहकर गुरु की सेवा करनी होगी , तो अजितेन्द्रीय होकर आलस्य में आप गुरुकुल से निवृत्त होकर स्त्रियों क...