वृषोत्सर्ग क्यों ।। shashtriji

🙏🏻 *जय भगवान* 🙏🏻
🍀 *जयतु संस्कृतम् जयतु भारतम्* 🍀
गरूड पुराण। 
*वृषोत्सर्ग* की महिमा।

इसके बाद लोमश ऋषिकी संगतिसे वह बहुत से तीर्थोंमें गया। अधिक पुण्य नील (वृष) विवाहसे उसको प्राप्त हुआ था। श्रेष्ठ विमानपर चढ़कर दिव्य विषयोंको भोगनेके बाद उसका विरसेनके राजकुल में जन्म हुआ। इस जन्म में उसको वीरपंचानन नाम की ख्याति प्राप्त हुई। वह धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इस पुरुषार्थ चतुष्ट्यका एक अद्वितीय साधक था। वृषोत्सर्ग करते समय वहां जो नौकर चाकर उपस्थित थे, वह भी गायकी पूंछके तर्पणके छींटोंका स्पर्श करके दिव्य रूप हो गये।  जो दूसरे ही इस कार्य को देख रहे थे, वे लोग हृष्ट-पुष्ट हो गये और उनका स्वरूप कांतिसे चमक उठा। इसके अतिरिक्त जो लोग इस सत्कर्मके भूभागसे बहुत दूर थे, वे मलिन दिखाई दे रहे थे। वृषोत्सर्ग न देखते हुए जो लोग उसकी निंदा करने वाले थे, वे अभागे, दीन-हीन और व्यवहार आदि में ऋक्ष, कृष और वस्त्रविहीन हो गये। हे द्विज ! मैंने भगवान पराशरसे पूर्व जन्मसे संबंध इस राजाका अद्भुत और धार्मिक जो वृतांत सुना था, उसका वर्णन आपसे कर दिया। इसलिए आप मेरे ऊपर कृपा करके अब अपने घर लौट जायें। मंत्रियोंके ऐसे वाक्योंको सुनकर वह ब्राह्मण अत्यधिक आश्चर्यचकित हो उठे। तदनंतर राजसेवकोंके द्वारा उन्हें घर पर पहुंचा दिया गया। वशिष्ठ ने कहा :- हे राजन ! सभी कर्मोमें वृषोत्सर्ग कर्म श्रेष्ठतम है। अतः आप यदि यमराजसे भयभीत है तो यथाविधि वृषोत्सर्ग कर्म ही करें। हे राजश्रेष्ठ ! वृषोत्सर्गके अतिरिक्त अन्य कोई भी ऐसा साधन नहीं है, जो मनुष्यको स्वर्ग प्राप्ति की सिद्धि प्रदान कर सके। आपको मैंने धर्मका रहस्य बता दिया है। यदि पति-पुत्रसे युक्त नारी पतिके आगे मर जाती है, तो उसके निमित्त वृषोत्सर्ग नहीं करना चाहिये, अपितु करना चाहिए अपितु दूध देनेवाली गायका दान देना चाहिये। श्री कृष्णने कहा :- हे खगेश ! महर्षि वशिष्ठके उक्त वचनों को सुनकर राजा वीर वाहनने मथुरामें जाकर विधिवत वृषोत्सर्गका अनुष्ठान किया।


✍🏻 *शास्त्री जी*🌹
💐 *#भूदेव३८*

shashtriji bhavnagar

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