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Showing posts from November, 2023

अथ शतचण्डी विधानम् ॥ शास्त्र ज्ञान।।

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*॥ अथ शतचण्डी विधानम् ॥*   *उक्तं च क्रोडतन्त्रे ।*  यदा यदा सतां हानिरात्मनो ग्लानिरेव च ।  तदा कार्या शतावृत्ती रिपुघ्ना भूतिवर्धना ॥ १ ॥  दुःस्वप्न दर्शने घोरे महामारीसमुद्भवे ।  पुष्टिप्रदा शतावृत्तिः कार्या चायुः क्षये तथा ॥२॥  महाभये छेदयोगे दुर्भिक्षे मरणेऽपि च ।  कुर्यात्तत्र शतावृत्तिं देवीमाहात्म्यमुत्तमम् ॥३॥  अद्भुते च समुत्पन्ने बान्धवानां महोत्सवे ।  कुर्याच्चण्डीशतावृत्तिं सर्वसंपत्तिकारणम् ॥ ४ ॥  शतावृत्त्या भवेदायुः शतावृत्त्या समागमः ।  वश्या भवन्ति राजानः श्रियमाप्नोति संपदाम् ॥५॥  धनार्थी प्राप्नुयादर्थं पुत्रकामो लभेत्सुतम् ।  विद्यार्थी प्राप्नुयाद्विद्यां रोगी रोगात्प्रमुच्यते ॥६॥  चतुर्वर्गफलावाप्तिकारणं रिपुनाशनम् ।  चण्डी शतावृत्तिफलं नास्ति यज्ञे वरानने ॥७॥  विधिमत्र प्रवक्ष्यामि शृणुष्व वरवर्णिनि ।  निमन्त्रयेत पूर्वेधुर्विप्रान्विद्या समन्वितान् ॥ ८ ॥  अलोलुपानृजून् शान्तान् देव्या भक्तिसमन्वितान् ।  मंत्रोपतन्त्रतन्त्रज्ञान् शतावृत्तौ नियोजयेत् ॥९...

गोपाष्टमी।।

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*गोपाष्टमी*   कार्त‍िक मास के शुक्‍ल पक्ष की अष्‍टमी को गोपाष्‍टमी के रूप में मनाया जाता है. इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने गौ चारण लीला शुरू की थी. इसी द‍िन बाल कृष्‍ण और बलराम ने गाय चराना शुरू क‍िया था.   बाल कृष्‍ण ने माता यशोदा से इस द‍िन गाय चराने की ज‍िद की थी और यशोदा मइया ने कृष्‍ण के प‍िता से इसकी अनुमत‍ि मांगी थी. नंद महाराज से अनुमत‍ि दे दी । कहा क‍ि गाय चराने की शुरुआत करने के ल‍िए यह द‍िन अच्‍छा और शुभ है. इसल‍िए अष्‍टमी पर कृष्‍ण ग्‍वाला बन गए और उन्‍हें गोव‍िन्‍दा के नाम से लोग पुकारने लगे.  *गोपाष्‍टमी का महत्‍व* ऐसी मान्‍यता है क‍ि गोपाष्‍टमी के द‍िन गौ सेवा करने वाले व्‍यक्‍ति के जीवन में कभी कोई संकट नहीं आता. जिस प्रकार एक मां अपनी संतान को हर सुख देना चाहती है, उसी प्रकार गौ माता भी सेवा करने वाले जातकों को अपने कोमल हृदय में स्‍थान देती हैं और उनकी हर मनोकामना पूरी करती हैं. गाय माता का दूध, घी, दही, छाछ और यहां तक कि उनका मूत्र भी स्‍वास्‍थ्‍यवर्धक होता है. यह त्‍योहार हमें याद दिलाता है कि हम गौ माता के ऋणी हैं और हमें उनका सम्‍...

કનકધારા સ્તોત્ર હિન્દી અનુવાદ .shashtriji bhavnagar

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कनकधारा स्तोत्र हिन्दी अनुवाद सहित 〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️  कनकधारा स्तोत्र की रचना आदिगुरु शंकराचार्य जी ने की थी। कनकधारा का अर्थ होता है स्वर्ण की धारा, कहते हैं कि इस स्तोत्र के द्वारा माता लक्ष्मी को प्रसन्न करके उन्होंने सोने की वर्षा कराई थी। यह सम्भव भी है; क्योंकि 32 वर्ष की आयु में (सन् 788 से सन् 820 तक) ब्रह्मसूत्र और गीता जैसे अनेक उपनिषदों पर भाष्य लिखना, अनेक स्तोत्र की रचना करना, विवेक चूड़ामणि जैसे ग्रन्थ की रचना, कई शक्तिपीठ की स्थापना, कोई साधारण आत्मा नहीं कर सकती। आदि शंकराचार्य ने कनकधारा स्तोत्र के सन्दर्भ में कोई विधि-विधान का उल्लेख नहीं किया है। इसका एक बार पाठ करना भी पर्याप्त है। समय और सुविधा हो तो नियत समय, नियत संख्या में अपने सामर्थ्य अनुसार जप किया जा सकता है। सिद्ध मंत्र होने के कारण कनकधारा स्तोत्र का पाठ शीघ्र फल देनेवाला और दरिद्रता का नाश करनेवाला है। इसके नित्य पाठ से धन सम्बंधित सभी प्रकार के अवरोध दूर होते हैं और महालक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है। विशेषकर दीपावली की रात्रि वृषभ एवं सिंह लग्न में इसका पाठ विशेष फलदायक माना गया है ...

महा पूज्य अगस्त्य।।

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बहुतो लोकनि के जिज्ञासा छैन्हि, अगस्त्य तर्पणके संबंध मे सभहक एकेटा प्रश्न आयल जे हम सभ अगस्त्य मुनि के तर्पण कियाक करैत छी ? उत्तर अछि :- अगस्त्य मुनि अनेको बेर सृष्टि मे प्रलयंकारी शक्ति के विध्वंस कए सृष्टि संचालन मे सहायक रहला अछि । हुनक अनको आविष्कार सँ हम सभ एखनहुँ लाभान्वित होइत रहैत छी। पूर्व समय मे आतापी आ वातापी नामक दूटा दैत्य अपन आकार के छोट कए अगस्त्य मुनि जहन समुद्र जल सँ आचमनी / कुरूर करैत रहथि , तहन हुनक मुँह बाटे, पेट मे पैस गेलन्हि । पेट मे गेलाक बाद ओ अपन आकार पैघ करय लागल। मुनि के जखने आभास भेलन्हि जे इ सभ आकार पैघ कए कऽ हमर पैट फारि देमय चाहैत अछि , हमरा समाप्ते कए देत। तखन ओ बामा हाथ सँ पेट मलय लगलाह आ दहिना हाथे पुरा समुद्र पिब लेलाह । ब्रह्मा , विष्णु आ अन्य देवता चिन्तित भए गेलाह जे जल यदि पृथ्वी पर नहि रहत तखन सृष्टि कोना चलत । (संकलन:- सीता राम झा) ब्रह्मा सहित सभ देवगण हुनका लग उपस्थित भेलाह , हुनका कहल जे जँ जल समाप्त भए जेतै तँ कोनो इ सृष्टि चलतै । ओहि समय मे ब्रह्मा कहलखिन्ह जे जल अहाँ छोरि दियौक आ एकटा वरदान माँगि लिय । पहिले ओ अपन साँस रोकिक आतापी आ वात...

જય જલારામ બાપા

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Jay bhgvan shashtriji BHAVNAGAR *🙏 જય જલારામ 🙏*    *પૂજ્ય શ્રી જલારામ બાપાના અસલી ફોટા વિષેની જાણકારી. "ગોંડલના દિવાન પ્રાણશંકર જોષી સાહેબ ઇ.સ 1952માં લગભગ 85 વરસના હતા. પ્રખર વિદ્વાન અને ચારિત્ર્યશીલ એમનું વ્યક્તિત્વ. એ અને મહાત્મા ગાંધી શામળદાસ કોલેજમાં સાથે ભણતા. એ સમયે એમણે એક મુલાકાતમાં બાપાના આ ફોટા વિશે અધિકૃત વાત કરેલી છે. જે રોમાંચક છે.*               *જલારામ બાપાનો સમયકાળ તા.4 /11/1799 થી તા.23/2/1881 સુધી..કારતક સુદ સાતમ સોમવાર વિક્રમ સંવત 1856 થી મહા વદ દસમ,બુધવાર વિક્રમ સંવત 1937) જલારામ બાપાને દિવાનશ્રી પ્રાણશંકર જોષી સાહેબે નાનકડી ઉંમરે જોયેલા. ભકતમંડળી સાથે કિર્તન કરતા. એ વખતે ગોંડલ સ્ટેટની જાહોજલાલી ઉચ્ચસ્થાને હતી. ગોંડલનરેશ જલાભગતને અહોભાવથી માન આપતા, સદાવ્રત માટે મદદ કરતા.*               *જોષી સાહેબના મામા કલ્યાણજીભાઇ એ જમાનામાં નવી નવી ગણાતી ફોટોગ્રાફીના શોખીન હતા. એમનો એક મિત્ર નામે Anson જે ડેન્માર્કનો વતની હતો અને ફોટોગ્રાફીમાં નિષ્ણાત હતો. આ બંને જણાએ ભેગા મળી રાજકોટમાં...

પંચાંગ//દર્શન//સંસ્કૃતિ//08/11/23.

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                 પંચાંગ  *🌞 🚩 । l ॐ l । 🚩 🌞* 🕉 ।। *श्री गणेशाय नमः* ।। 🕉  *सुप्रभातम् स्नेह वंदनम्*   🌐 *आज का पंचांग* 🌐  ⛳ *तिथि*…..१० ( दशमी ) 0️⃣8️⃣-1️⃣1️⃣-2⃣0⃣2️⃣3️⃣ 🔔 *वार*..….बुधवार  🦚 *नक्षत्र*….पू.फ़ा. 🪔 *योग*……अैंद्र ✳️ *करण*….बव 🌅 *सूर्योदय* :- ०६ः५० 🌌 *सूर्यास्त* : - ०५ः५७ 🌓 *पक्ष*......……कृष्ण  🌝 *चन्द्र राशि*…सिंह/२६ः०१ से कन्या 🌝 ⛱️ *ऋतु*.......……हेमंत  🪷 *मास*.…….गुजरात- महाराष्ट्र में आश्विन अन्यत्र कार्तिक *कलियुगाब्द*......५१२५ 🌎 *विक्रम संवत्*.....२०७९ 🌏 *शक संवत्*...... १९४५ 🌹 *अभिजीत मुहूर्त….✖️✖️✖️ 🌚 *राहुकाल…..मध्याह्न १२ः२४ से ०१ः४८ तक  ( शुभ कार्य वर्जित ) 💐*।। आपका दिन मंगलमय हो ।।* 💐 🌺🌺 कल ०९-११-२३ गुरुवार 🌺🌺 🙏 रमा एकादशी ( केला ) 🙏 🍀 वाक्बारस - गोवत्स द्वादशी 🍀 🙏 ● *जय श्री कृष्ण* ● 🙏 *अन्धीकरोमि भुवनं बधिरीकरोमि* *धीरं सचेतनमचेतनतां नयामि।* *कृत्यं न पश्यति न येन हितं श्रृणोति* *धीमानधीतमपि न प्रतिसंदधाति।।* *मैं (क्रोध) भुवन को ...

Puja path ma achman nu mahatv

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पूजा पाठ में आचमन का महत्त्व 〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️ पूजा, यज्ञ आदि आरंभ करने से पूर्व शुद्धि के लिए मंत्र पढ़ते हुए जल पीना ही आचमन कहलाता है। इससे मन और हृदय की शुद्धि होती है।    । यह जल आचमन का जल कहलाता है। इस जल को तीन बार ग्रहण किया जाता है। माना जाता है कि ऐसे आचमन करने से पूजा का दोगुना फल मिलता है।  जल लेकर तीन बार निम्न मंत्र का उच्चारण करते हैं:- हुए जल ग्रहण करें- ॐ केशवाय नम:  ॐ नाराणाय नम: ॐ माधवाय नम: ॐ ह्रषीकेशाय नम:, बोलकर ब्रह्मतीर्थ (अंगुष्ठ का मूल भाग) से दो बार होंठ पोंछते हुए  हस्त प्रक्षालन करें (हाथ धो लें)। उपरोक्त विधि ना कर सकने की स्थिति में केवल दाहिने कान के स्पर्श मात्र से ही आचमन की विधि की पूर्ण मानी जाती है।   आचमन करते समय हथेली में 5 तीर्थ बताए गए हैं- 1. देवतीर्थ, 2. पितृतीर्थ, 3. ब्रह्मातीर्थ, 4. प्रजापत्यतीर्थ और 5. सौम्यतीर्थ।   कहा जाता है कि अंगूठे के मूल में ब्रह्मातीर्थ, कनिष्ठा के मूल प्रजापत्यतीर्थ, अंगुलियों के अग्रभाग में देवतीर्थ, तर्जनी और अंगूठे के बीच पितृतीर्थ और हाथ के मध्य भाग में सौम्यतीर्थ हो...