एकादशी व्रत

पद्मिनी एकादशी ( कमला एकादशी) 💐💐💐

अधिक मास के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली एकादशी तिथि को पद्मिनी एकादशी कहा जाता है। इसे कमला या पुरुषोत्तमी एकादशी भी कहते हैं। 

हिन्दू पंचांग के अनुसार पद्मिनी एकादशी का व्रत जो महीना अधिक हो जाता है उस पर निर्भर करता है। इस एकादशी का व्रत करने के लिए कोई चन्द्र मास तय नहीं है।
पद्मिनी एकादशी का व्रत 29 जुलाई को शनिवार के दिन रखा जाएगा। इस दिन पूरे विधि विधान से भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। इस व्रत को करने से यश बढ़ता है और मृत्यु के बाद वैकुंठ की प्राप्ति होती है। 

धर्मराज युधिष्‍ठिर बोले - हे जनार्दन ! अधिकमास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का क्या नाम है? तथा उसकी विधि क्या है? कृपा करके आप मुझे बताइए। भगवान कृष्‍ण बोले- मलमास में अनेक पुण्यों को देने वाली एकादशी का नाम पद्मिनी है। इसका व्रत करने पर मनुष्य कीर्ति प्राप्त करके बैकुंठ को जाता है, जो मनुष्‍यों के लिए भी दुर्लभ है।

कथा।🌺🌺🙏

त्रेता युग में एक पराक्रमी राजा था जिसका नाम कीतृवीर्य था। इस राजा की कई रानियाँ थी परंतु किसी भी रानी से राजा को संतान नहीं हुई। संतानहीन होने के कारण राजा और उनकी रानियां तमाम सुख सुविधाओं के बावजूद दु:खी रहते थे। संतान प्राप्ति की कामना से राजा अपनी रानियों के साथ तपस्या करने के लिए निकल पड़े। वर्षों तक तपस्या करने के बाद भी राजा की तपस्या सफल नहीं हुई। रानी ने तब देवी अनुसूया से उपाय पूछा :- देवी ने उन्हें मल मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत करने के लिए कहा। अनुसूया ने रानी को इस व्रत का विधान भी बताया। रानी ने अनुसूया के बताये विधान के अनुसार पद्मिनी एकादशी का व्रत रखा। व्रत की समाप्ति पर भगवान प्रकट हुए और वरदान मांगने के लिए कहा। रानी ने भगवान से कहा प्रभु आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो मुझे नहीं बल्कि मेरे पति को वरदान दीजिए। भगवान ने तब राजा से वरदान मांगने के लिए कहा।

राजा ने भगवान से प्रार्थना की कि आप मुझे ऐसा पुत्र प्रदान करें जो सर्वगुण सम्पन्न हो जो तीनों लोकों में आदरणीय हो। मेरा पुत्र आपके अतिरिक्त किसी से पराजित न हो। भगवान तथास्तु कह कर चले गये। कुछ दिनों के बाद रानी ने एक पुत्र को जन्म दिया जो कार्तवीर्य अर्जुन के नाम से जाना गया। यह बालक आगे चलकर अत्यंत पराक्रमी राजा हुआ। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, सर्वप्रथम भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को पुरुषोत्तमी एकादशी के व्रत की कथा सुनाई थी और इसके महत्व से उन्हें अवगत करवाया था।

पूजा विधि🌺🌺🌺

पद्मिनी एकादशी के दिन प्रात: काल स्नानादि नित्य कर्मों से निवृत होकर व्रती व्रत का संकल्प करें। संकल्प लेने के बाद पूजा स्थान पर एक चौकी पर कलश की स्थापना करके उस पर भगवान विष्णु की प्रतिमा रखें। फिर उसकी पूजा करें। भगवान विष्णु की प्रतिमा को पंचामृत से स्नान करवाकर नेवैद्य अर्पित करें। फूल अर्पित करें, और धूप, दीप से आरती करें। यदि आप स्वंय ये पूजा 
नही कर सकते तो किसी योग्य विद्वान ब्राह्मण से भी पूजन करवा सकते हैं। विष्णु सहस्त्रनाम और विष्णु पुराण का पाठ करें। इसके बाद पद्मिनी एकादशी व्रत का महात्म्य और कथा पढ़े या श्रवण करें।
दिनभर निर्जल एवं निराहार रहकर व्रत करें।
व्रत की रात को जागरण करें। और रात्रि के हर प्रहर में भगवान को अलग-अलग वस्तुएं अर्पित करें। जैसे एक प्रहर में नारियल, दूसरे में प्रहर फल, तीसरे में मेवे और चौथे प्रहर में पान-सुपारी आदि। अगले दिन द्वादशी को ब्राह्मण को भोजन करवायें और यथाशक्ति दान-दक्षिणा दे कर संतुष्ट करें। फिर उसके बाद स्वयं खाना खायें। इस व्रत के दौरान दुर्व्यसनों से दूर रहे और सात्विक जीवन जीयें। झूठ ना बोले और परनिंदा से बचें।🌺🙏👍

  ॐ श्री महा विष्णवे नमः। 🙏🙏🙏

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