અમાવસ્યા ભોજન

*अमावास्यां नरा ये तु परान्नमुपभुञ्जते ।*
 *तेषां मासकृतं पुण्यमन्नदातुः प्रदाप्यते ।।*
 *षण्मासमयने भुङ्क्ते त्रीन्मासान् विषुवे स्मृतम् ।*
 *वर्षैर्द्वादशभिश्चैव यत्पुण्यं समुपार्जितम्।।*
 *तत सर्वं विलयं याति भुक्त्वा सूर्येन्दुसम्प्लवे ।*
      _स्कन्दपुराण, प्रभासखण्ड २००/११-१३_

"जो मनुष्य *अमावस्या* को दूसरे का अन्न खाता है, उसका *महीने भर का* किया हुआ पुण्य अन्नदाता को मिल जाता है। इसी प्रकार *अयनारम्भ* के दिन दूसरे का अन्न खाये तो *छः महीनों* का और *विषुवकाल* (जब सूर्य मेष अथवा तुला राशिपर आये) में दूसरे का अन्न खाने से *तीन महीनों* का पुण्य चला जाता है। *चन्द्रग्रहण और सूर्यग्रहण* के अवसर पर दूसरे का अन्न खाये तो *बारह वर्षों से एकत्र किया हुआ सब पुण्य नष्ट हो* जाता है। *संक्रान्ति के दिन* दूसरे का अन्न खाने से *महीने भर से अधिक* समय का पुण्य चला जाता है।"
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