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Showing posts from May, 2019

Good morning

🍃🍂🍃🍂~⭕〽~🍂🍃🍂🍃     *🙏🏻   N A M A H    S H I V A Y  🙏🏻* 🍃🍂🍃🍂🍃🎭🍃🍂🍃🍂🍃 *"संगीत सुनकर ज्ञान नहीं मिलता !*                  *मंदिर जा कर भगवान नहीं मिलता !!* *पत्थर तो इसलिए पूजते हैं लोग !*               *क्यूँकि विश्वास के लायक इंसान नहीं मिलता !!"*               *चार वेदो का अर्थ ना जानो तो कोई बात नहीं। परंतु समझदारी, जवाबदारी, वफ़ादारी, और ईमानदारी, ये चार शब्दों का मर्म जानो तो भी जीवन सार्थक हो जाये।* 🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃     *😊  G O O D ~  M O R N I N G  😊* 🍃🍂🍃🍂🍃🎭🍃🍂🍃🍂🍃

Kali mahavidhya rahshy

દશ મહાવિદ્યા પોસ્ટ 1 *મહાકાળી* દસ મહાવિદ્યાઓમાં કાલીનું સ્થાન પ્રથમ છે. આપણે ત્યાં સામાન્ય રીતે તેમનું મહાકાળી નામ વધુ પ્રચલિત છે. મહાભાગવત્ અનુસાર કાલી જ મુખ્ય વિદ્યા છે અને તેમાં ઉગ્ર અને સૌમ્ય એમ બે રૂપોમાં બાકીની મહાવિદ્યાઓ સમાવિષ્ટ છે. ભાગવત શિવને સાધ્ય કરવાથી જ સિદ્ધિઓ મળે છે. ભગવાન શિવને સાધ્ય કરવાથી જે સિદ્ધિઓ મળે છે એ તમામ સિદ્ધિઓ મહાવિદ્યાઓ સિદ્ધ કરવાથી મળી શકે છે. દાર્શનિક દ્રષ્ટિએ જોઇએ તો પણ તંત્ર કહે છે કે કાલતત્ત્વનું મહત્વ સૌથી વધુ છે. એટલે જ કહી શકાય કે મહાકાળી જ સમસ્ત વિદ્યાઓની આદિવિદ્યા છે. અમુક તંત્રગ્રંથો તો ત્યાં સુધી કહે છે કે મહાકાલની પ્રિયતમા કાલી જ પોતાનાં દક્ષિણ અને વામ રૂપોમાં દસ મહાવિદ્યાઓમાં નામથી જાણીતી થઇ. કાલીકાપુરાણ કહે છે કે એક વખત હિમાલય પર સ્થિત મતંગ ઋષિના આશ્રમમાં જઇ દેવતાઓએ મહામાયાની સ્તુતિ કરી. સ્તુતિથી પ્રસન્ન થઇ ભગવતીએ મતંગવનિતાના સ્વરૂપે દેવતાઓને દર્શન આપ્યા. અને પૂછ્યું કે ‘તમે કેવી સ્તુતિ કરી રહ્યા છો?’ એ સમયે જ દેવીના શરીરમાં કાળા વર્ણવાળી એક નારીનું પ્રાગટ્ય થયું. દેવતાઓ વતી તેણે જ ઉત્તર આપ્યો કે,   ‘તેઓ મારી સ્તુતિ કરી રહ્ય...

Ganga jayanti

shashtriji Bhavnagar 🔯☘🔥 *जय गंगे* 🔥☘🔯 🌷 *पापनाशिनी, पुण्यप्रदायिनी गंगा* 🌷 ➡ *11 मई 2019 शनिवार को श्री गंगा सप्तमी (गंगा जयंती) है ।* 🙏🏻 *जैसे मंत्रों में ॐकार, स्त्रियों में गौरीदेवी, तत्त्वों में गुरुतत्त्व और विद्याओं में आत्मविद्या उत्तम है, उसी प्रकार सम्पूर्ण तीर्थों में गंगातीर्थ विशेष माना गया है। गंगाजी की वंदना करते हुए कहा गया हैः* 🌷 *संसारविषनाशिन्यै जीवनायै नमोऽस्तु ते।* *तापत्रितयसंहन्त्र्यै प्राणेश्यै ते नमो नमः।।* 🙏🏻 *'देवी गंगे ! आप संसाररूपी विष का नाश करने वाली हैं । आप जीवनरूपा है। आप आधिभौतिक, आधिदैविक और आध्यात्मिक तीनों प्रकार के तापों का संहार करने वाली तथा प्राणों की स्वामिनी हैं । आपको बार-बार नमस्कार है।'(स्कंद पुराण, काशी खं.पू. 27.160)* 🙏🏻 *जिस दिन गंगा जी की उत्पत्ति हुई वह दिन गंगा जयंती (वैशाख शुक्ल सप्तमी) और जिस दिन गंगाजी पृथ्वी पर अवतरित हुई वह दिन 'गंगा दशहरा' (ज्येष्ठ शुक्ल दशमी) के नाम से जाना जाता है। इन दिनों में गंगा जी में गोता मारने से विशेष सात्त्विकता, प्रसन्नता और पुण्यलाभ होता है। वैशाख, कार्तिक और ...

शिव गोरक्ष

।!! ॐशिवगोरक्षॐ !!                !! शिवालय का तत्त्व रहस्य !! ■ प्रायः प्रत्येक शिवालय में नन्दी, कूर्म, गणेश, हनुमान, जलधारा, नाग जैसे प्रतीक होते है, ये रहस्यमय है! देव -देवियों की आकृतियों में, उसके आसन -वाहन -प्रतीक -लक्षणों मे सूक्ष्म भाव एवं गूढ़ ज्ञानमय सांकेतिक सूत्र संनिहित रहते हैं! शिवालय के प्रत्येक मंदिर में नन्दी के दर्शन सर्वप्रथम होते है! यह शिव का वाहन है! यह सामान्य बैल नहीं है! यह ब्रह्मचर्य का प्रतीक है!  शिव का वाहन जैसे नन्दी है वैसे ही हमारे आत्मा का वाहन शरीर --काया है! अतः शिव को आत्मा का एवं नन्दी को शरीर का समझा जा सकता है! जैसे नन्दी की दृष्टि सदाशिव की ओर ही है, वैसे ही हमारा शरीर आत्माभिमुख बने, शरीर का लक्ष्य आत्मा बने, यह संकेत समझना चाहिये! शिव का अर्थ है कल्याण! सभी के कल्याण का भाव आत्मसात् करें, सभी के मंगल की कामना करे तो जीव शिवमय बन जाता है!  अपने आत्मा में एसे शिवतत्त्व को प्रकट करने की साधना को ही शिव दर्शन कह सकते है और इसके लिये सर्वप्रथम आत्मा के वाहन शरीर को उपयुक्त बनाना होगा! शरीर नन्दी...

अक्षय तृतीया ७ मई

अक्षय तृतीया 7 मई को ******************** करें दान-पुण्य, होगी शुभ फल की प्राप्ति =======================  अक्षय तृतीया के दिन जो भी दान किया जाता है उसका पुण्‍य कई गुना बढ़ा जाता है. इस दिन अच्छे मन से घी, शक्‍कर, अनाज, फल-सब्‍जी, इमली, कपड़े और सोने-चांदी का दान करना चाहिए. कई लोग इस दिन इलेक्‍ट्रॉनिक सामान जैसे कि पंखे और कूलर का दान भी करते हैं। हिन्‍दू धर्म में अक्षय तृतीया का बड़ा महत्‍व है. इस दिन सोना खरीदने की प्रथा है. माना जाता है कि अक्षय तृतीया के दिन सौभाग्य और शुभ फल की प्राप्ति होती है. इस दिन जो भी काम किया जाता है उसका परिणाम शुभ होता है. इस बार अक्षय तृतीया 7 मई को मनाई जा रही है। अक्षय तृतीया का शुभ मुहूर्त :- इस मुहूर्त में सोना खरीदना बहुत शुभ माना जाता है. 7 मई - सुबह 06:26 से रात 11:47 तक। अक्षय तृतीया की पूजन व‍िध‍ि :- 1. अक्षय तृतीया के दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करना शुभ माना जाता है. 2. कुछ लोग इस दिन व्रत भी रखते हैं. 3. सुबह उठकर स्नान करने के बाद पीले कपड़े पहनते हैं. 4. विष्णु जी को गंगाजल से नहलाकर, उन्हें पीले फूलों ...

अक्षय तृतीया ७ मई

अक्षय तृतीया 7 मई को ******************** करें दान-पुण्य, होगी शुभ फल की प्राप्ति =======================  अक्षय तृतीया के दिन जो भी दान किया जाता है उसका पुण्‍य कई गुना बढ़ा जाता है. इस दिन अच्छे मन से घी, शक्‍कर, अनाज, फल-सब्‍जी, इमली, कपड़े और सोने-चांदी का दान करना चाहिए. कई लोग इस दिन इलेक्‍ट्रॉनिक सामान जैसे कि पंखे और कूलर का दान भी करते हैं। हिन्‍दू धर्म में अक्षय तृतीया का बड़ा महत्‍व है. इस दिन सोना खरीदने की प्रथा है. माना जाता है कि अक्षय तृतीया के दिन सौभाग्य और शुभ फल की प्राप्ति होती है. इस दिन जो भी काम किया जाता है उसका परिणाम शुभ होता है. इस बार अक्षय तृतीया 7 मई को मनाई जा रही है। अक्षय तृतीया का शुभ मुहूर्त :- इस मुहूर्त में सोना खरीदना बहुत शुभ माना जाता है. 7 मई - सुबह 06:26 से रात 11:47 तक। अक्षय तृतीया की पूजन व‍िध‍ि :- 1. अक्षय तृतीया के दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करना शुभ माना जाता है. 2. कुछ लोग इस दिन व्रत भी रखते हैं. 3. सुबह उठकर स्नान करने के बाद पीले कपड़े पहनते हैं. 4. विष्णु जी को गंगाजल से नहलाकर, उन्हें पीले फूलों ...

Brhman parichay +11

Pujypad gurudev bhagvan ki gurubani... ब्राम्हण का एकादश परिचय .... 1 गोत्र ..... गोत्र का अर्थ है कि वह कौन से ऋषिकुल का है या उसका जन्म किस ऋषिकुल से सम्बन्धित है । किसी व्यक्ति की वंश-परम्परा जहां से प्रारम्भ होती है, उस वंश का गोत्र भी वहीं से प्रचलित होता गया है। हम सभी जानते हें की हम किसी न किसी ऋषि की ही संतान है, इस प्रकार से जो जिस ऋषि से प्रारम्भ हुआ वह उस ऋषि का वंशज कहा गया । विश्‍वामित्रो जमदग्निर्भरद्वाजोऽथ गौतम:। अत्रिवर्सष्ठि: कश्यपइत्येतेसप्तर्षय:॥ सप्तानामृषी-णामगस्त्याष्टमानां यदपत्यं तदोत्रामित्युच्यते॥ विश्वामित्र, जमदग्नि, भारद्वाज, गौतम, अत्रि, वशिष्ठ, कश्यप- इन सप्तऋषियों और आठवें ऋषि अगस्त्य की संतान गोत्र कहलाती है। इस तरह आठ ऋषियों की वंश-परम्परा में जितने ऋषि (वेदमन्त्र द्रष्टा) आ गए वे सभी गोत्र कहलाते हैं। और आजकल ब्राह्मणों में जितने गोत्र मिलते हैं वह उन्हीं के अन्तर्गत है।  सिर्फ भृगु, अंगिरा के वंशवाले ही उनके सिवाय और हैं जिन ऋषियों के नाम से भी गोत्र व्यवहार होता है। इस प्रकार कुल दस ऋषि मूल में है। इस प्रकार देखा जाता है क...