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Showing posts from April, 2019

ऊखल बंधन लीला

Shashtrijibvnbhudev38 !! ऊखल बंधन लीला ... अध्यात्मिक चिंतन !! "एकदा गृहदासीषु यशोदा नंदगेहिनी . कर्मान्तरनियुक्तासु निर्ममंथ स्वयं दधि .. *एक बार कार्तिक मास का समय था, नंदरानी यशोदा जी ने सोचा मेरे लाल इतने बड़े हो गये मैने आज तक अपने हाथों से माखन निकालकर उन्हें नहीं खिलाया ऐसा सोचकर नंदरानी यशोदा जी ने घर की दासियो को तो दूसरे कामो में लगा दिया ओर स्वयं दही मथने लगी. भगवान ने जो-जो लीलाये अब तक की थी दधिमंथन के समय वे उन सबका स्मरण करती और गाती भी जाती थी . आध्यात्मिक पक्ष - यहाँ भक्त के स्वरुप का निरूपण है शरीर से दधिमंथन रूप सेवाकर्म हो रहा है, हृदय में स्मरण की धारा सतत प्रवाहित हो रही है, वाणी में बाल-चरित्र का संगीत, भक्त ‘तन, मन, वचन’ – सब अपने प्यारे की सेवा में संलग्न है. वे अपने स्थूल कटिभाग में सूत से बाँधकर रेशमी लहँगा पहने हुए थी. नेति खीचते रहने से बाँहे कुछ थक गयी थी, हाथों के कंगन और कानो के कर्णफूल हिल रहे थे, मुँह पर पसीने की बूँदे झलक रही थी, चोटी में गुंथे हुए मालती के सुन्दर पुष्प गिरते जा रहे थे . अध्यात्मिक पक्ष - कमर में रेशमी लहँगा डोरी...

चैत्र नवरात्री 2019 मधु मास

🌷 *जय अंबे* 🌷 🌹🌷 *शास्त्रीजी* 🌷🌹 *ॐ नमो नारायणाय*  ।। *जय गुरुदेव* ।। ।। *चैत्र नवरात्रि २०१९*।। नवरात्र वह समय है, जब दोनों रितुओं का मिलन होता है। इस संधि काल मे ब्रह्मांड से असीम शक्तियां ऊर्जा के रूप में हम तक पहुँचती हैं। मुख्य रूप से हम दो नवरात्रों के विषय में जानते हैं - चैत्र नवरात्र एवं आश्विन नवरात्र। चैत्र नवरात्रि गर्मियों के मौसम की शुरूआत करता है और प्रकृति माँ एक प्रमुख जलवायु परिवर्तन से गुजरती है। यह चैत्र शुक्ल पक्ष प्रथमा से प्रारंभ होती है और रामनवमी को इसका समापन होता है। इस वर्ष चैत्र नवरात्र, 6 अप्रैल से प्रारंभ है और समापन 14अप्रैल को है। नवरात्रि में माँ भगवती के सभी नौ रूपों की उपासना की जाती है। इस समय आध्यात्मिक ऊर्जा ग्रहण करने के लिए लोग विशिष्ट अनुष्ठान करते हैं। इस अनुष्ठान में देवी के रूपों की साधना की जाती है। चैत्र नवरात्रि 2019की तिथि :- 6 अप्रैल (पहला दिन) प्रतिपदा - इस दिन पर "घटत्पन", "चंद्र दर्शन" और "शैलपुत्री पूजा" की जाती है। 7अप्रैल (दूसरा दिन) दिन पर "सिंधारा दौज" और "मा...

पंचांग के अंगों के फल

पंचांग के अंगों के फल योग फल विष्कुम्भ रूपवान, भाग्यवान, अनेक तरह के अलंकारों से पूर्ण, बुद्धिमान और पंडित होता है| प्रीति स्त्रियों का प्यारा, तत्व को जानने वाला, उत्साही और स्वार्थ के लिए काम करने वाला होता है| आयुष्मान मानी, धनवान, शेर ओ शायरी करेने वाला, बहुत वर्षों तक जीने वाला,युद्ध में विजयी होता है| सौभाग्य राजा का मंत्री, सब कामो में चतुर और स्त्रियों का परम स्नेही होता है| शोभन रूपवान, अनेक पुत्र और स्त्री वाला, सब कामो में तत्पर और युद्धभूमि में जाने के लिए सर्वदा तैयार रहता है| अतिगंड माता के लिए अशुभ, माता का हंता और यदि गंडमूल में भी हो तो कुल का नाश करने वाला होता है| सुकर्म अच्छे कर्म करने वाला, प्यार से बात करने वाला, अच्छा स्वाभाव और ममता वाला होता है| धृति धैर्य रखने वाला (क्षमाशील), कीर्तिमान, धनवान, भाग्यवान,सुख से संपन्न और गुणी होता है| शूल पथरी(शूल) के दर्द से युक्त, धर्मात्मा, सभी शास्त्रों में निष्णांत, ज्ञानी और धन उपार्जन में कुशल और यज्ञ करने वाला होता है| गंड अनेक कष्ट भोगने वाला, बड़े सर वाला, छोटे शरीर वाला (ज्ञानी परन्तु मेहनत करन...

दिप प्रज्वलन नियम।

जय महादेव *दीपक प्रज्जवलन के नियम* 👉 हिंदू शास्त्रों में पूजा-पाठ के दौरान जिन कुछ चीजों का महत्व है, उन्हीं में से एक है पूजा के दौरान दिया जलाना। पूजा करते हुए दीपक जलाने से देवी-देवता प्रसन्न होते हैं. हालांकि मान्यता ये भी है कि दिया सही वक्त पर और सही तरीके से ही जलाया जाना चाहिए तभी भगवान का आशीर्वाद मिलता है. हम आपको बता रहे हैं कि दीपक जलाने के दौरान किन बातों का ध्यान रखा जाना जरूरी है। 👉दीपक जलाना महत्वपूर्ण है क्योंकि इस विधि के साथ ही किसी भी पूजा का अंत माना जाता है जैसे फल-फूल चढ़ाना, स्नान-ध्यान पूजा का हिस्सा है, वैसे ही इसका भी अलग महत्व है माना जाता है कि भगवान के सामने रौशनी करना खुद के जीवन से अंधकार को दूर करना है  👉दिया जलाने के लिए वैसे तो घी के दीपक को अच्छा माना जाता है लेकिन अलग-अलग अवसरों पर अलग-अलग तेल और अलग तरह की बाती लगती है 👉 जैसे शनिवार को घी की बजाए सरसों तेल से दीपक जलाना चाहिए *हमेशा कोशिश करें कि दो बातियों को आपस में गूंथकर ही दिया लगाया जाए।* 👉 *एक बाती वाला दिया तभी शुभ माना जाता है जब वो फूलबाती हो यानी बीच में हो दो...

Bhairav ashtakam

श्रीमहाकाल भैरवाष्टक 🔸🔸🔹🔹🔸🔸 यं यं यं यक्षरूपं दशदिशिविदितं भूमिकम्पायमानं सं सं संहारमूर्तिं शिरमुकुटजटा शेखरंचन्द्रबिम्बम् । दं दं दं दीर्घकायं विक्रितनख मुखं चोर्ध्वरोमं करालं पं पं पं पापनाशं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ॥ १॥ रं रं रं रक्तवर्णं, कटिकटिततनुं तीक्ष्णदंष्ट्राकरालं घं घं घं घोष घोषं घ घ घ घ घटितं घर्झरं घोरनादम् । कं कं कं कालपाशं द्रुक् द्रुक् दृढितं ज्वालितं कामदाहं तं तं तं दिव्यदेहं, प्रणामत सततं, भैरवं क्षेत्रपालम् ॥ २॥ लं लं लं लं वदन्तं ल ल ल ल ललितं दीर्घ जिह्वा करालं धूं धूं धूं धूम्रवर्णं स्फुट विकटमुखं भास्करं भीमरूपम् । रुं रुं रुं रूण्डमालं, रवितमनियतं ताम्रनेत्रं करालम् नं नं नं नग्नभूषं , प्रणमत सततं, भैरवं क्षेत्रपालम् ॥ ३॥ वं वं वायुवेगं नतजनसदयं ब्रह्मसारं परन्तं खं खं खड्गहस्तं त्रिभुवनविलयं भास्करं भीमरूपम् । चं चं चलित्वाऽचल चल चलिता चालितं भूमिचक्रं मं मं मायि रूपं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ॥ ४॥ शं शं शं शङ्खहस्तं, शशिकरधवलं, मोक्ष सम्पूर्ण तेजं मं मं मं मं महान्तं, कुलमकुलकुलं मन्त्रगुप्तं सुनित्यम् । यं यं यं...