ऊखल बंधन लीला
Shashtrijibvnbhudev38 !! ऊखल बंधन लीला ... अध्यात्मिक चिंतन !! "एकदा गृहदासीषु यशोदा नंदगेहिनी . कर्मान्तरनियुक्तासु निर्ममंथ स्वयं दधि .. *एक बार कार्तिक मास का समय था, नंदरानी यशोदा जी ने सोचा मेरे लाल इतने बड़े हो गये मैने आज तक अपने हाथों से माखन निकालकर उन्हें नहीं खिलाया ऐसा सोचकर नंदरानी यशोदा जी ने घर की दासियो को तो दूसरे कामो में लगा दिया ओर स्वयं दही मथने लगी. भगवान ने जो-जो लीलाये अब तक की थी दधिमंथन के समय वे उन सबका स्मरण करती और गाती भी जाती थी . आध्यात्मिक पक्ष - यहाँ भक्त के स्वरुप का निरूपण है शरीर से दधिमंथन रूप सेवाकर्म हो रहा है, हृदय में स्मरण की धारा सतत प्रवाहित हो रही है, वाणी में बाल-चरित्र का संगीत, भक्त ‘तन, मन, वचन’ – सब अपने प्यारे की सेवा में संलग्न है. वे अपने स्थूल कटिभाग में सूत से बाँधकर रेशमी लहँगा पहने हुए थी. नेति खीचते रहने से बाँहे कुछ थक गयी थी, हाथों के कंगन और कानो के कर्णफूल हिल रहे थे, मुँह पर पसीने की बूँदे झलक रही थी, चोटी में गुंथे हुए मालती के सुन्दर पुष्प गिरते जा रहे थे . अध्यात्मिक पक्ष - कमर में रेशमी लहँगा डोरी...