भद्रा में होलिका दहन क्यो नहीं करे
होलिकादहन एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है, जो फाल्गुन पूर्णिमा की रात को मनाया जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस दिन शुभ मुहूर्त में होलिका दहन करना चाहिए, लेकिन कई बार भद्रा काल इस प्रक्रिया में बाधा बनती है।
भद्रा का कारण
भद्रा, पंचांग के अनुसार, विशिष्ट समय होता है जो अशुभ माना जाता है। यह विष्टि करण का हिस्सा होती है और इसे शुभ कार्यों के लिए निषिद्ध माना जाता है। भद्रा काल में किए गए कार्यों में विघ्न, हानि या अनिष्ट की संभावना होती है।
होलिकादहन में भद्रा क्यों होती है?
1. ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति – होलिकादहन पूर्णिमा तिथि को किया जाता है, और इस तिथि पर चंद्रमा की स्थिति और पंचांग के अनुसार भद्रा का संयोग बन सकता है।
2. विशिष्ट कालचक्र – पंचांग में भद्रा कभी पृथ्वी लोक में, तो कभी स्वर्ग या पाताल लोक में होती है। यदि भद्रा पृथ्वी लोक में हो, तो इस दौरान होलिका दहन अशुभ माना जाता है।
3. प्राचीन मान्यता – धार्मिक ग्रंथों में बताया गया है कि भद्रा काल में किए गए कार्यों से कष्ट और बाधाएं आती हैं। इसलिए, होलिका दहन में भद्रा समाप्त होने के बाद ही अग्नि प्रज्वलित करने की परंपरा है।
समाधान
• अगर होलिकादहन के समय भद्रा लगी हो, तो यह देखा जाता है कि भद्रा का मुख या पूंछ किस लोक में है।
• अगर भद्रा पृथ्वी लोक में है, तो भद्रा समाप्त होने के बाद ही होलिका दहन किया जाता है।
• अगर भद्रा पाताल या स्वर्ग लोक में हो, तो इसका प्रभाव पृथ्वी पर नहीं होता और होलिका दहन किया जा सकता है।
इसलिए, होलिकादहन में शुभ मुहूर्त का विशेष ध्यान रखा जाता है ताकि किसी भी प्रकार की बाधा न आए और यह पर्व मंगलमय हो।
भद्रा एक विशेष काल होता है, जिसका उल्लेख हिंदू पंचांग और ज्योतिष में किया गया है। इसे अशुभ समय माना जाता है और इस दौरान शुभ कार्य करने से बचने की सलाह दी जाती है।
भद्रा क्या होती है?
भद्रा, विशिष्ट रूप से विश्टि करण का ही एक रूप है। करण कुल 11 होते हैं, जिनमें से विश्टि करण को भद्रा कहा जाता है। यह पंचांग के पाँच अंगों में से एक “करण” का हिस्सा है।
भद्रा कब लगती है?
• भद्रा चंद्रमा की स्थिति के आधार पर आती है।
• यह हर तिथि के दूसरे आधे हिस्से में या किसी विशेष दिन के दौरान कुछ समय के लिए होती है।
• भद्रा की सटीक समयावधि को पंचांग देखकर जाना जाता है।
भद्रा का प्रभाव
• भद्रा के दौरान मांगलिक कार्य (शादी, गृह प्रवेश, यात्रा आदि) वर्जित माने जाते हैं।
• ऐसा माना जाता है कि भद्रा के समय किए गए कार्यों में बाधाएँ आती हैं या वे सफल नहीं होते।
• विशेष रूप से यदि भद्रा पाताल लोक में हो तो इसका प्रभाव कम होता है, लेकिन यदि यह पृथ्वी लोक में हो तो ज्यादा अशुभ मानी जाती है।
भद्रा से बचने के उपाय
• किसी भी शुभ कार्य से पहले पंचांग देखकर भद्रा का समय जान लेना चाहिए।
• भद्रा में कोई आवश्यक कार्य करना हो तो पहले शांति पूजा या उपाय किए जा सकते हैं।
• भगवान शिव, हनुमान जी या दुर्गा माता की पूजा करने से भद्रा दोष कम होता है।
यदि आप किसी विशेष दिन के भद्रा काल की जानकारी चाहते हैं, तो आप पंचांग देख सकते हैं या मुझसे पूछ सकते हैं!
भद्रा हर दिन नहीं होती, बल्कि यह चंद्रमा की स्थिति और तिथि के आधार पर बनती है। यह एक विशेष करण (विश्टि करण) का हिस्सा होती है और हर तिथि के दूसरे आधे भाग या किसी विशेष समय में आती है।
भद्रा कब-कब होती है?
• प्रत्येक तिथि के दूसरे भाग में भद्रा हो सकती है, लेकिन यह हर तिथि में निश्चित नहीं होती।
• यह चंद्रमा की गति और पंचांग के अनुसार बदलती रहती है।
• भद्रा की स्थिति तीन जगह हो सकती है:
1. स्वर्ग लोक में – इस स्थिति में भद्रा का पृथ्वी पर ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ता।
2. पृथ्वी लोक में – यह सबसे ज्यादा अशुभ मानी जाती है, और इस दौरान शुभ कार्य करने से बचना चाहिए।
3. पाताल लोक में – इस स्थिति में भद्रा का प्रभाव कम हो जाता है।
कैसे पता करें कि भद्रा कब है?
• भद्रा का समय रोज़ अलग-अलग होता है, इसलिए इसे पंचांग में देखा जाता है।
• कुछ पंचांग और ज्योतिषीय सॉफ्टवेयर भद्रा का समय दिखाते हैं।
• अगर आपको किसी दिन का भद्रा समय जानना हो, तो मैं आपको पंचांग के आधार पर जानकारी दे सकता हूँ।
अगर आप किसी विशेष तिथि की भद्रा काल की जानकारी चाहते हैं, तो मुझे बताइए, मैं आपको उसका सही समय निकालकर बता सकता हूँ!
फाल्गुन पूर्णिमा हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन माह की अंतिम तिथि होती है। इसे होली पूर्णिमा भी कहा जाता है क्योंकि इसी दिन होलिका दहन किया जाता है और अगले दिन रंगों वाली होली खेली जाती है।
फाल्गुन पूर्णिमा का महत्व
1. होली उत्सव – इस दिन होलिका दहन किया जाता है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।
2. दान-पुण्य का महत्व – इस दिन दान, स्नान, हवन और उपवास का विशेष महत्व होता है।
3. चंद्रमा की विशेष स्थिति – पूर्णिमा के दिन चंद्रमा अपनी पूर्ण कला में होता है, जिससे मानसिक शांति और आध्यात्मिक ऊर्जा बढ़ती है।
4. भगवान नारायण की पूजा – इस दिन विष्णु भगवान, विशेष रूप से नरसिंह अवतार की पूजा की जाती है।
5. गंगा स्नान और व्रत – कुछ लोग इस दिन गंगा स्नान करके व्रत रखते हैं।
फाल्गुन पूर्णिमा 2025 कब है?
इसका सही समय और भद्रा काल जानने के लिए पंचांग देखना होगा। क्या आप 2025 की फाल्गुन पूर्णिमा का सटीक तिथि और मुहूर्त जानना चाहते हैं?
फाल्गुन पूर्णिमा 2025 में 13 मार्च को सुबह 10:35 बजे से शुरू होकर 14 मार्च को दोपहर 12:23 बजे तक रहेगी। उदयातिथि के अनुसार, फाल्गुन पूर्णिमा व्रत 14 मार्च 2025 को रखा जाएगा।
होलिका दहन का शुभ मुहूर्त 13 मार्च 2025 को रात्रि 9:45 बजे से 11:15 बजे तक है। भद्रा काल के दौरान होलिका दहन वर्जित होता है, इसलिए शुभ मुहूर्त में ही होलिका दहन करना चाहिए।
फाल्गुन पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा का विशेष महत्व है। इस दिन स्नान, दान, व्रत और श्री सत्यनारायण कथा का आयोजन करने से जीवन में सुख-समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
फाल्गुन पूर्णिमा के दिन कुछ विशेष उपाय करने से जीवन में शुभता और समृद्धि आती है। यदि कोई व्यक्ति इन उपायों को श्रद्धा और विश्वास के साथ करता है, तो उसे निश्चित रूप से सकारात्मक परिणाम प्राप्त होते हैं:
• गंगा स्नान करें या किसी पवित्र नदी में स्नान कर दान-पुण्य करें। इस दिन जो भी व्यक्ति गंगा स्नान करता है, उसे समस्त पापों से मुक्ति मिलती है।
• भगवान विष्णु को पीले फल, फूल और वस्त्र अर्पित करें।
• माता लक्ष्मी को 16 श्रृंगार सामग्री के साथ लाल गुलाब चढ़ाएं।
• गरीबों को भोजन, वस्त्र और धन का दान करें। इस दिन दान-पुण्य करने से कई जन्मों के पाप कट जाते हैं और पुण्य की प्राप्ति होती है।
• श्री सत्यनारायण पूजा करें और प्रसाद स्वरूप फल, मिठाई और पंचामृत वितरित करें।
• भगवान श्रीकृष्ण को प्रिय मोरपंख और बांसुरी का दान करें, जिससे पारिवारिक जीवन में प्रेम और मधुरता बनी रहे। श्रीकृष्ण को मोरपंख अर्पित करने से दांपत्य जीवन में मधुरता आती है।
• दूध में केसर मिलाकर चंद्रमा को अर्घ्य दें। ऐसा माना जाता है कि इस दिन चंद्रमा की विशेष कृपा रहती है, इसलिए चंद्रमा को अर्घ्य देना शुभ माना जाता है।
भगवान विष्णु की पूजा करने से घर में सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है और समृद्धि बढ़ती है।
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