રુદ્રી પાઠ શિવ પૂજા.

नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय भस्माङ्गरागाय महेश्वराय। 
नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय तस्मै नकाराय नम: शिवाय ॥

जो शिव नागराज वासुकि का हार पहिने हुए हैं, तीन नेत्रों वाले हैं, तथा भस्म की राख को सारे शरीर में लगाये हुए हैं, इस प्रकार महान् ऐश्वर्य सम्पन्न वे शिव नित्य–अविनाशी तथा शुभ हैं। दिशायें जिनके लिए वस्त्रों का कार्य करती हैं, अर्थात् वस्त्र आदि उपाधि से भी जो रहित हैं; ऐसे निरवच्छिन्न उस नकार स्वरूप शिव को मैं नमस्कार करता हूँ।🙏🙏
रुद्राष्टाध्यायी यजुर्वेद का अंग है और वेदों को ही सर्वोत्तम ग्रंथ बताया गया है। 🙏🙏🙏
वेद शिव के ही अंश है वेद: शिव: शिवो वेद:। अर्थात् वेद ही शिव है तथा शिव ही वेद हैं, वेद का प्रादुर्भाव शिव से ही हुआ है। भगवान शिव तथा विष्णु भी एकांश हैं तभी दोनो को हरिहर कहा जाता है, हरि अर्थात् नारायण (विष्णु) और हर अर्थात् महादेव (शिव) वेद और नारायण भी एक हैं वेदो नारायण: साक्षात् स्वयम्भूरिति शुश्रुतम्। यही कारण है कि भारतीय संस्कृति में वेदों का इतना महत्व है तथा इनके ही श्लोकों, सूक्तों से पूजा, यज्ञ, अभिषेक आदि किया जाता है। शिव से ही सब है तथा सब में शिव का वास है, शिव, महादेव, हरि, विष्णु, ब्रह्मा, रुद्र, नीलकंठ आदि सब ब्रह्म के पर्यायवाची हैं। 
  रुद्र अर्थात् 'रुत्' और रुत् अर्थात् जो दु:खों को नष्ट करे, वही रुद्र है, रुतं--दु:खं, द्रावयति--नाशयति इति रुद्र:। 

2 .रुद्रहृदयोपनिषद् में लिखा है--

सर्वदेवात्मको रुद्र: सर्वे देवा: शिवात्मका:।

रुद्रात्प्रवर्तते बीजं बीजयोनिर्जनार्दन:।।

यो रुद्र: स स्वयं ब्रह्मा यो ब्रह्मा स हुताशन:।

ब्रह्मविष्णुमयो रुद्र अग्नीषोमात्मकं जगत्।।

अर्थात् रूद्र ही ब्रह्मा, विष्णु है सभी देवता रुद्रांश है और सबकुछ रुद्र से ही जन्मा है। इससे यह सिद्ध है कि रुद्र ही ब्रह्म है, वह स्वयम्भू है। 
उपरोक्त श्लोक के अनुसार रुद्र ही सृष्टि स्थिति विनाश के कारक हैं तो फिर स्पष्ट है कि वह भूत वर्तमान व भविष्य के भी कारक है !

 .भगवान शिव का एक नाम कपाली भी है जो कि सभी भूतों के भूतनाथ हैं !

.वायुपुराण में लिखा है--
यश्च सागरपर्यन्तां सशैलवनकाननाम्।

सर्वान्नात्मगुणोपेतां सुवृक्षजलशोभिताम्।।

दद्यात् कांचनसंयुक्तां भूमिं चौषधिसंयुताम्।

तस्मादप्यधिकं तस्य सकृद्रुद्रजपाद्भवेत्।।

यश्च रुद्रांजपेन्नित्यं ध्यायमानो महेश्वरम्।

स तेनैव च देहेन रुद्र: संजायते ध्रुवम्।।

अर्थ: जो व्यक्ति समुद्रपर्यन्त, वन, पर्वत, जल एवं वृक्षों से युक्त तथा श्रेष्ठ गुणों से युक्त ऐसी पृथ्वी का दान करता है, जो धनधान्य, सुवर्ण और औषधियों से युक्त है, उससे भी अधिक पुण्य एक बार के रुद्री जप एवं रुद्राभिषेक का है। इसलिये जो भगवान शिव का ध्यान करके रुद्री का पाठ करता है, वह उसी देह से निश्चित ही रुद्ररूप हो जाता है, इसमें संदेह नहीं है।

 . रुद्राष्टाध्यायी का "च में" अर्थात चमक के पाठ का अध्ययन करें तो आपको पता चलेगा कि रुद्र प्रत्येक स्थान पर है फिर चाहे वह है भूत हो भविष्य हो या वर्तमान अथवा प्रेत ही क्यों ना हो !

 .ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्र: प्रचोदयात।

यह शिव गायत्री है और भगवान शिव को इसमें तत्पुरुष कहा गया है और तत्पुरुष को दूसरे शब्दों में प्रेत कहा जाता है आपने देखा होगा नारायण बलि में तत्पुरुष का भी पिंडदान किया जाता है !

 .असंख्याता सहस्राणि ये रुद्राऽअधि भूम्याम्।
तेषाम् सहस्रयोजने व ध्वनि तन्मसि ।।
उपरोक्त श्लोक यजुर्वेद के रुद्र सूक्त से लिया गया है इसमें स्पष्ट रूप से कहा गया है कि हे रुद्रदेव आप भूमि के अंदर असंख्य रूप में विराजमान है अतः अपने दुख रूपी वाण को हमसे हजारों योजन दूर रखें ।
और आप सभी जानते हैं कि रुद्र का पूजन प्रेत(तत्पुरूष) के रूप में भी किया जाता है ।

       🚩 हर हर महादेव 🚩

Shashtriji BHAVNAGAR.
 8347320681.

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