बेबस आत्मा
*"""""""'"""बेबस-आत्मा""'''''''''''''* *आज इस कलयुग के दौर में हमारी आत्मा इतनी कमजोर हो गई है की वह मन से लड़ने की सारी शक्त्ति खो चुकी है क्योंकि उसे हमेशा मन और इन्द्रियों के इशारों पर नाचना पड़ता है इसलिए आज ऐसी "बेबस-आत्मा" दुनिया के प्रलोभनों(विकारों)का सामना नही कर पाती वह मन और इन्द्रियों के हाथों का खिलौना बन चुकी है वह काम-क्रोध आदि दुश्मनों की फौज द्वारा कैद हो चुकी है इसलिए जब-तक उसके सिर से एक-एक करके सब बेड़ियाँ तोड़ नही फेंकते और जब-तक इसे काल की कोठरी से निकाल नही लेते और जब-तक इसे किसी कामिल मुर्शिद की शरण में नही लाते तब-तक यह अपने खोये हुए वैभव को कैसे प्राप्त कर सकती है?इसलिए जब-तक इन्सान पूरे गुरु की रहनुमाई में अपनी आत्मा को नौ द्वारों से समेत नही लेता तब-तक आत्मा पर चढ़ी भारी बेड़ियाँ को वह कैसे उतार सकता है?और उसे मन -माया से कैसे परास्त करा सकता है?.......*