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Showing posts from December, 2022

बेबस आत्मा

*"""""""'"""बेबस-आत्मा""'''''''''''''*        *आज इस कलयुग के दौर में हमारी आत्मा इतनी कमजोर हो गई है की वह मन से लड़ने की सारी शक्त्ति खो चुकी है क्योंकि उसे हमेशा मन और इन्द्रियों के इशारों पर नाचना पड़ता है इसलिए आज ऐसी "बेबस-आत्मा" दुनिया के प्रलोभनों(विकारों)का सामना नही कर पाती वह मन और इन्द्रियों के हाथों का खिलौना बन चुकी है वह काम-क्रोध आदि दुश्मनों की फौज द्वारा कैद हो चुकी है इसलिए जब-तक उसके सिर से एक-एक करके सब बेड़ियाँ तोड़ नही फेंकते और जब-तक इसे काल की कोठरी से निकाल नही लेते और जब-तक इसे किसी कामिल मुर्शिद की शरण में नही लाते तब-तक यह अपने खोये हुए वैभव को कैसे प्राप्त कर सकती है?इसलिए जब-तक इन्सान पूरे गुरु की रहनुमाई में अपनी आत्मा को नौ द्वारों से समेत नही लेता तब-तक आत्मा पर चढ़ी भारी बेड़ियाँ को वह कैसे उतार सकता है?और उसे मन -माया से कैसे परास्त करा सकता है?.......*

કર્મ શું છે

कर्म क्या है....? 〰️〰️🌼〰️〰️    कर्मों को एक वर्गीकरण के अनुसार  तीन प्रकार का बताया गया है।  ये तीन प्रकार है-- 1. कायिक 〰️〰️〰️ कायिक कर्म उन कर्मों को कहा जाता है जो काया या शरीर द्वारा किये जाते है।  2. वाचिक  〰️〰️〰️ जो कर्म वचन या वाणी द्वारा किये जाते है उन्हें वाचिक कर्म कहा जाता है। 3. मानसिक 〰️〰️〰️〰️ मन से सम्पन्न होने वाले कर्म मानसिक कर्म कहलाते है।  इससे भिन्न गीता मे क्रमशः 3 प्रकार के कर्म का उल्लेख किया गया है।  1. सात्विक कर्म  〰️〰️〰️〰️〰️ जो कर्म शास्त्र विधि से नियत किया हुआ और कर्तापन से अभिमान से रहित, फल को न चाहने वाले पुरुष द्वारा बिना राग द्वेष से किया हुआ है वह कर्म सात्विक कर्म कहा जाता है (गीता 18:24)।  2. राजस कर्म  〰️〰️〰️〰️〰️ जो कर्म बहुत परिश्रम से युक्त है तथा फल को चाहने वाले अहंकार युक्त पुरूष द्वारा किया जाता है, वह कर्म राजस कर्म कहलाता है। (गीता 18:25)  3. तामसिक कर्म  〰️〰️〰️〰️〰️ जो कर्म परिणाम हानि, हिंसा और सामर्थ्य को न विचारकर केवल अज्ञान से आरंभ किया जाता है, वह कर्म तामस कर्म कहा जात...

મંત્ર શકિત દ્વારા આપડું જીવન બદલો

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*🕉️मंत्र जप से बदल सकता है जीवन🕉️*  कभी भी आपके मन-मस्तिष्क  में यह बात आई है कि मंत्रों का क्या और कितना महत्व है..?  मंत्रों की शक्ति और उनके हेल्थ बेनिफिट्स के बारे में अक्सर हम सुनते रहते हैं, लेकिन शायद ही कभी हमने हेल्थ और मंत्र के साइंटिफिक कनेक्शन को जानने की कोशिश की हो.! अगर हम मंत्रों के हेल्थ कनेक्शन को जान जाएंगे, तो ज़ाहिर है उन्हें बेहतर तरी़के से अपने जीवन में अपनाकर हेल्दी और बेहतर ज़िंदगी जी सकेंगे। 👉वैसे तो हमारे ऋषि मुनि व संतों ने मंत्रों के बारे में लाखों वर्ष पूर्व ही काफी कुछ बताया है। हमारे सनातन धर्म ग्रंथों में मंत्रों पर काफी विस्तार से वर्णन है।और आज विज्ञान भी इसी तर्ज पर अपना रिसर्च करके मंत्रों की प्रभाव को पूरी तरह स्वीकार करने लगा है। 👉हमारे पौराणिक ग्रंथों में व ज्योतिष शास्त्रों में मंत्रों पर काफी विस्तृत जानकारियां उपलब्ध है। सही मंत्र जप से सजीव व निर्जीव दोनों तरह के पदार्थों को प्रभावित किया जा सकता है। 👉मंत्रों से पांचों तत्वों आकाश, अग्नि, वायु, पृथ्वी व जल को पूर्ण रूप से प्रभावित कर सकते हैं और मंत्रों द्वारा दैवीय शक्तियों ...

આસન નું મહત્વ જાણો.

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पूजा आदि कर्म में आसन का महत्त्व 🍃🌼🍃🌼🍃🌼🍃🌼🍃🌼🍃🌼 हमारे महर्षियों के अनुसार जिस स्थान पर प्रभु को बैठाया जाता है, उसे दर्भासन कहते हैं  और जिस पर स्वयं साधक बैठता है, उसे आसन कहते हैं।  योगियों की भाषा में यह शरीर भी आसन है और प्रभु के भजन में इसे समर्पित करना सबसे बड़ी पूजा है।  *जैसा देव वैसा भेष* वाली बात भक्त को अपने इष्ट के समीप पहुंचा देती है । कभी जमीन पर बैठकर पूजा नहीं करनी चाहिए, ऐसा करने से पूजा का पुण्य भूमि को चला जाता है।  नंगे पैर पूजा करना भी उचित नहीं है। हो सके तो पूजा का आसन व वस्त्र अलग रखने चाहिए जो शुद्ध रहे।  लकड़ी की चैकी, घास फूस से बनी चटाई, पत्तों से बने आसन पर बैठकर भक्त को मानसिक अस्थिरता, बुद्धि विक्षेप, चित्त विभ्रम, उच्चाटन, रोग शोक आदि उत्पन्न करते हैं।  अपना आसन, माला आदि किसी को नहीं देने चाहिए, इससे पुण्य क्षय हो जाता है।  *निम्न आसनों का विशेष महत्व है। 🍃🌼🍃🌼🍃🌼🍃🌼🍃🌼🍃 कंबल का आसन:👉 कंबल के आसन पर बैठकर पूजा करना सर्वश्रेष्ठ कहा गया है। लाल रंग का कंबल मां भगवती, लक्ष्मी, हनुमानजी आदि की पूजा के लिए तो...

સુદર્શન ચક્ર સ્તોત્ર પાઠ

सुदर्शन चक्र स्तोत्र || Sudarshana Chakra Stotram सुदर्शनचक्र के इस महत्पुण्यशाली स्तोत्र का जो मनुष्य परम भक्ति से पाठ करता है, उसके ग्रहदोष और रोगादि सभी कष्ट विनष्ट हो जाते हैं और वह विष्णुलोक को प्राप्त करता है। श्रीसुदर्शनचक्रस्तोत्रम् अथवा सुदर्शनपूजाविधिः सुदर्शनचक्र-पूजा-विधि रुद्र उवाच । सुदर्शनस्य पूजां मे वद शङ्खगदाधर । ग्रहरोगादिकं सर्वं यत्कृत्वा नाशमेति वै ॥ १॥ रुद्र ने कहा-हे शङ्ख-गदाधर ! उस सुदर्शन की पूजा के विषय में मुझे बतायें, जिसे करने से ग्रहदोष और रोगादि सभी कष्ट विनष्ट हो जाते हैं। हरिरुवाच । सुदर्शनस्य चक्रस्य श्रृणु पूजां वृषध्वज । स्नानमादौ प्रकुर्वीत पूजयेच्च हरिं ततः ॥ २॥ मूलमन्त्रेण वै न्यासं मूलमन्त्रं श्रृणुष्व च । सहस्रारं हुं फट् नमो मन्त्रः प्रणवपूर्वकः ॥ ३॥ कथितः सर्वदुष्टानां नाशको मन्त्रभेदकः । ध्यायेत्सुदर्शनं देवं हृदि पद्मेऽमले शुभे ॥ ४॥ शङ्खचक्रगदापद्मधरं सौम्यं किरीटिनम् । आवाह्य मण्डले देवं पूर्वोक्तविधिना हर ॥ ५॥ पूजयेद्गन्धपुष्पाद्यैरुपचारैर्महेश्वर । पूजयित्वा जपेन्मन्त्रं शतमष्टोत्तरं नरः ॥ ६॥ एवं यः कुरुते रुद्र चक्रस्यार्चनमुत्तमम् । सर...