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Showing posts from November, 2022

ભગવાન શિવ ના અવતારો.

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भगवान शिव के 14 अवतार  🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸 शिव महापुराण में भगवान शिव के अनेक अवतारों का वर्णन मिलता है, लेकिन बहुत ही कम लोग इन अवतारों के बारे में जानते हैं। धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान शिव के 19 अवतार हुए थे। आइए जानें शिव के 19 अवतारों के बारे में। 1- वीरभद्र अवतार 🔸🔸🔹🔹🔸🔸 भगवान शिव का यह अवतार तब हुआ था, जब दक्ष द्वारा आयोजित यज्ञ में माता सती ने अपनी देह का त्याग किया था। जब भगवान शिव को यह ज्ञात हुआ तो उन्होंने क्रोध में अपने सिर से एक जटा उखाड़ी और उसे रोषपूर्वक पर्वत के ऊपर पटक दिया। उस जटा के पूर्वभाग से महाभंयकर वीरभद्र प्रगट हुए। शिव के इस अवतार ने दक्ष के यज्ञ का विध्वंस कर दिया और दक्ष का सिर काटकर उसे मृत्युदंड दिया। 2- पिप्पलाद अवतार 🔸🔸🔹🔹🔸🔸 मानव जीवन में भगवान शिव के पिप्पलाद अवतार का बड़ा महत्व है। शनि पीड़ा का निवारण पिप्पलाद की कृपा से ही संभव हो सका। कथा है कि पिप्पलाद ने देवताओं से पूछा- क्या कारण है कि मेरे पिता दधीचि जन्म से पूर्व ही मुझे छोड़कर चले गए? देवताओं ने बताया शनिग्रह की दृष्टि के कारण ही ऐसा कुयोग बना। पिप्पलाद यह सुनकर बड़े क्...

અમાવસ્યા ભોજન

*अमावास्यां नरा ये तु परान्नमुपभुञ्जते ।*  *तेषां मासकृतं पुण्यमन्नदातुः प्रदाप्यते ।।*  *षण्मासमयने भुङ्क्ते त्रीन्मासान् विषुवे स्मृतम् ।*  *वर्षैर्द्वादशभिश्चैव यत्पुण्यं समुपार्जितम्।।*  *तत सर्वं विलयं याति भुक्त्वा सूर्येन्दुसम्प्लवे ।*       _स्कन्दपुराण, प्रभासखण्ड २००/११-१३_ "जो मनुष्य *अमावस्या* को दूसरे का अन्न खाता है, उसका *महीने भर का* किया हुआ पुण्य अन्नदाता को मिल जाता है। इसी प्रकार *अयनारम्भ* के दिन दूसरे का अन्न खाये तो *छः महीनों* का और *विषुवकाल* (जब सूर्य मेष अथवा तुला राशिपर आये) में दूसरे का अन्न खाने से *तीन महीनों* का पुण्य चला जाता है। *चन्द्रग्रहण और सूर्यग्रहण* के अवसर पर दूसरे का अन्न खाये तो *बारह वर्षों से एकत्र किया हुआ सब पुण्य नष्ट हो* जाता है। *संक्रान्ति के दिन* दूसरे का अन्न खाने से *महीने भर से अधिक* समय का पुण्य चला जाता है।" 🌳

માનવ શરીર નો સંરચના.

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क्या आप इस शरीर के रहस्य को वैदिक रूपसे जानते है?  यह ब्रह्माण्ड है, वैसा ही यह शरीर भी बताया गया है | भगवान् सूर्य बोले – वत्स कमठ ! तुम्हारी बुद्धि तो वृद्धों जैसी है | तुम बहुत अच्छा प्रतिपादन कर रहे हो | अब मैं तुमसे शरीर का लक्षण सुनना चाहता हूँ; उसे बताओ | कमठ ने कहा – विप्रवर ! जैसा यह ब्रह्माण्ड है, वैसा ही यह शरीर भी बताया गया है | पैरों का मूल (तलवा) पातळ है, पैरों का उपरी भाग रसातल है, दोनों गुल्फ तलातल हैं, दोनों पिंडलियों को महातल कहा गया है, दोनों घुटने सुतल, दोनों ऊरू ( जांघ) तथा कटिभाग अतललोक है | नाभि को भूलोक, उदार को भुवर्लोक, वक्षःस्थल को स्वर्गलोक, ग्रीवा को महर्लोक और मुख को जनलोक कहते हैं | दोनों नेत्र तपोलोक है तथा मस्तक को सत्यलोक कहा गया है | जैसे पृथ्वी पर सात द्वीप स्थित हैं, उसी प्रकार इस शरीर में सात धातुएं हैं, उनके नाम सुनिए – त्वचा, रक्त, मांस, मेदा, हड्डी, मज्जा और वीर्य – ये सात धातुएं हैं | शरीर में तीन सौ साठ हड्डियाँ हैं तथा तीस लाख छप्पन हजार नौ नाड़ियाँ बतायी गयी हैं | जैसे नदियाँ इस पृथ्वी पर जल बहाती हैं, उसी प्...