મહાભારત કામધેનુ.

*महाभारत में कामधेनु*
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कामधेनु, (इच्छा पूरी करने वाली गाय जो अपने मालिक की हर इच्छा पूरी कर सकती थी) एक दैवीय गाय है और सभी गायों की माता भी। वशिष्ट मुनि के आश्रम में कामधेनु गाय थी जो उन्हें यज्ञ के लिए आवश्यक सभी सामग्री उपलब्ध कराती थी।

 एक बार वसु (छोटे भगवान) अपनी पत्नियों के साथ वशिष्ट ऋषि के आश्रम में घूमने आए। उनकी एक पत्नी कामधेनु पर मोहित हो गई और उसे पा लेने के लिए लालायित हो गई। वसु ने उसके लिए कामधेनु को चुरा लिया। जब यह बात वशिष्ठ मुनि को ज्ञात हुई तो वे बहुत क्रोधित हुए और दण्ड स्वरुप उन्हें श्राप दिया कि वे सब मानव रूप में धरती पर पैदा होंगे।  

जब वासुओं ने मुनि से क्षमा याचना की तो वे पिघल गए और अपने अभिशाप को कुछ कम करते हुए उन्‍होंने कहा कि जिस वासु ने इसकी शु‍रुआत की उसे लम्बे समय तक धरती पर जीवन व्यतीत करना होगा लेकिन वह धरती पर एक प्रसिद्ध व्‍यक्ति होगा। बाकी के सातों वासु अपने जन्‍म के एक वर्ष के भीतर स्‍वर्ग लौट सकेंगे। इसे कार्यरूप देने के लिए वासुओं ने गंगा से अनुरोध किया कि वे सभी को अपने बच्‍चों के रूप में रखें और वो मान गईं। फिर ऐसा हुआ कि एक बार हस्तिनापुर के राजा शांतनु ने गंगा नदी के तट पर एक खूबसूरत युवती को देखा। वे उससे प्रेम करने लगे और उन्‍होंने उससे विवाह के लिए पूछा। खूबसूरत युवती ने उन्‍हे बतलाया कि वह गंगा हैं और खुशी-खुशी उनकी पत्‍नी बनने के लिए हामी भर दी।     

मगर गंगा ने एक शर्त रखी - उनके किसी भी कार्य पर वो कोई सवाल नही करेंगे। उन्‍होंने शादी कर ली और वे बहुत खुश थे। लेकिन गंगा ने एक बहुत ही आश्‍चर्यजनक काम किया - जब भी उन्‍हें संतान होतीं, वे उसे नदी में बहा आतीं। सात बार अपने बच्‍चों को नदी में बहाते देखकर भी शांतनु शान्त रहे पर आठवीं बार वे खुद को रोक नहीं सके।   

जब शांतनु ने गंगा से पूछा कि वे अपने आठवें बच्चे को भी बहा क्यों रही हैं, तो वो मुस्‍कुराईं और बच्चे को शांतनु को सौंपकर स्वर्ग वापिस लौट गईं। स्‍वर्ग लौटने से पहले उन्‍होंने बतलाया कि ये बच्चे असल में वसु हैं। वसु ने उनसे प्रार्थना की थी कि वे उन्‍हें अपनी संतानों के रूप में जन्‍म दें। और उन्हें जल में विसर्जित इसलिए किया ताकि वो स्‍वर्ग वापिस जा सकें। आठवें को वो शांतनु की देख-रेख में छोड़ गईं जो बड़ा होकर भीष्म के नाम से विख्यात हुआ।   

" जीवन का सत्य आत्मिक कल्याण है ना की भौतिक सुख !"
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