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Showing posts from June, 2020

દક્ષિણા કા મહત્વ

” दक्षिणा ” देने से ही क्यों मिलता है धार्मिक कर्मों का फल। 🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸 *बहुत मेहनत और खोजने के बाद ये मिला है कृपया पूरी पोस्ट पढ़ने का कष्ट करें* यजुर्वेद में एक बहुत सुंदर मन्त् है, वह कहता है ब्रह्मचर्य आदि व्रतों से ही दीक्षा प्राप्त होती है अर्थात् ब्रह्मविद्या या किसी अन्य विद्या में प्रवेश मिलता है। फिर दीक्षा से दक्षिणा अर्थात् धन समृद्धि आदि प्रतिष्ठा प्राप्त होती है। यहाँ दक्षिणा मिलने का अर्थ है दक्षिणा देना, वेद ने यही माना है कि जो देता है उसे देवता और अधिक देते हैं। जो नहीं देता है, देवता उसका धन छीनकर दानियों को ही दे देते हैं। फिर कहता है दक्षिणा से श्रद्धा प्राप्त होती है, और श्रद्धा से सत्य प्राप्त होता है। क्रम है, व्रत –> दीक्षा –> दक्षिणा –> श्रद्धा –> सत्य मध्य में दक्षिणा है, एक बार दीक्षित हो गए, मार्ग पर बढ़ गए, और फिर दक्षिणा में लोभ किया तो मार्ग नष्ट हो जाता है। इसलिए विद्वानों, गुरु, आचार्य को दक्षिणा और पात्रों को दान देने से ही मार्ग आगे प्रशस्त होता है। दक्षिणा देने से अपने गुरु, आचार्य में श्रद्धा बढ़ती है। गुरु भी अपनी अन्य सांसार...

किसिका तिरस्कार न करें ।।

🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸 *किसी का तिरस्कार न करे* 🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸 किसी का तिरस्कार न करें.  इसलिए नहीं कि तिरस्कार योग्य लोग नहीं है जगत में, काफी है। जरूरत से ज्यादा है। बल्कि इसलिए कि तिरस्कार करने वाला अपनी ही आत्महत्या में लग जाता है। जब आप किसी का तिरस्कार करते हैं तो वह तिरस्कार योग्य था या नहीं, लेकिन आप नीचे गिरते है। जब आप तिरस्कार करते है किसी का, तो आपकी ऊर्जा ऊंचाइयां छोड़ देती है और नींचाइयों पर उतर आती है। यह बहुत मजे की बात है कि तिरस्कार जब आप किसी का करते है तो आपको उसी के तल पर भीतर उतर आना पड़ता है। इसलिए बुद्धिमानों ने कहां है, मित्र कोई भी चुन लेना, लेकिन शत्रु सोच समझ कर चुनना। क्योंकि आदमी को शत्रु के तल पर उतर आना पड़ता है। इसलिए अगर दो लोग जिंदगी भर लड़ते रहें, तो आप आखिर में पायेंगे कि उनके गुण एक जैसे हो जाते हैं। क्योंकि जिससे लड्ना पड़ता है, उसके तल पर होना पड़ता है, नीचे उतरना पड़ता है। इसलिए महावीर कहेंगे, अगर प्रशंसा बन सके तो करना, क्योंकि प्रशंसा में ऊपर जाना पड़ता है, निंदा में नीचे आना पड़ता है।  क्रोध अगर एक क्षण में उठने वाली घटना है और खो जाने वाली तो पा...

ઉપાસના માં માળા નું મહત્વ ભૂદેવ38

, :       *🙏श्री गणेशाय नम:🙏*    :            ,     *जय माता दी* *उपासना में माला का महत्व* - प्रार्थना करने के कई तरीके हैं, शब्द, कीर्तन या मंत्र से प्रार्थना - इनमें मंत्र सबसे ज्यादा प्रभावशाली माने जाते हैं - मन को तुरंत एकाग्र करते हैं मंत्र, इनका प्रभाव भी जल्दी होता है - हर मंत्र में अलग प्रभाव और अलग शक्ति होती है - मंत्र जाप के लिए अलग-अलग मालाओं का इस्तेमाल होता है - ऐसा करने से अलग-अलग मन्त्रों की शक्ति का पूरा लाभ मिलता है - मंत्र जाप में संख्या का विशेष महत्व है -सही संख्या में मंत्रों का जाप करने के लिए भी माला का प्रयोग होता है - माला में लगे हुए दानों को मनका कहते हैं - आमतौर पर माला में 108 मनके होते हैं -कभी-कभी माला में 27 या 74 मनके भी होते हैं माला के प्रयोग की सावधानियां - माला के मनकों की संख्या कम से कम 27 या  108 होनी चाहिए. हर मनके के बाद एक गाँठ जरूर लगी होनी चाहिए. - मंत्र जप के समय तर्जनी अंगुली से माला का स्पर्श नहीं होना चाहिए - सुमेरु का उल्लंघन भी नहीं होना चाहिए. - मंत्र ...

जीवन में सदा नम्रता को अपनाएं रखे । Bhudev

8.6.2020         *जीवन में सदा नम्रता को अपनाए रखें। बहुत आनन्द मिलेगा।*        लोग आनंद की प्राप्ति करना चाहते हैं। उसके लिए पुरुषार्थ भी करते हैं। बहुत पुरुषार्थ करते हैं । फिर भी स्थाई आनंद नहीं मिलता। तृप्तिदायक आनंद नहीं मिलता। बहुत घटिया स्तर का सुख मिलता है। क्षणिक सुख ही मिलता है । जिससे इच्छाएँ शांत नहीं हो पाती।         अनेक बार व्यक्ति पुरुषार्थ करता है और कुछ विशेष उपलब्धियां भी प्राप्त कर लेता है। धन संपत्ति सम्मान नौकर चाकर सोना चांदी बंगला गाड़ी उच्च पद आदि, ये सब प्राप्त करके भी उसे तृप्ति नहीं मिलती। बल्कि प्रायः अभिमान ही बढ़ जाता है।  और वह *अभिमान उसकी बुद्धि को नष्ट करता है। बुद्धि नष्ट होने पर फिर व्यक्ति दूसरों पर अन्याय आरंभ करता है। तब उसका पतन हो जाता है। वह सदा चिंतित दुखी और तनाव युक्त रहता है। इसलिए ऊँची  संपत्तियाँ प्राप्त करके भी अभिमान नहीं करना चाहिए। वह अत्यंत हानिकारक है।*  सुख शांति प्राप्ति के लिए, तनाव से मुक्ति पाने के लिए नम्रता को धारण करना चाहिए।        ...