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Showing posts from August, 2020

શ્રાધ્ધ વિશે .

श्राद्ध या पिन्डदान कितने प्रकार के है श्राद्ध या पिन्डदान क्यो करना चाहिए श्राद्ध या पिन्डदान के महत्व विषय के लिए अवश्य पढ़े  पितरों की संतुष्टि के उद्देश्य से श्रद्धापूर्वक किये जाने वाले तर्पर्ण, ब्राह्मण भोजन, दान आदि कर्मों को श्राद्ध कहा जाता है. इसे पितृयज्ञ भी कहते हैं. श्राद्ध के द्वारा व्यक्ति पितृऋण से मुक्त होता है और पितरों को संतुष्ट करके स्वयं की मुक्ति के मार्ग पर बढ़ता है. श्राद्ध या पिन्डदान दोनो एक ही शब्द के दो पहलू है पिन्डदान शब्द का अर्थ है अन्न को पिन्डाकार मे बनाकार पितर को श्रद्धा पूर्वक अर्पण करना इसी को पिन्डदान कहते है दझिण भारतीय पिन्डदान को श्राद्ध कहते है  श्राद्ध के प्रकार शास्त्रों में श्राद्ध के निम्नलिखित प्रकार बताये गए हैं - 1.    नित्य श्राद्ध : वे श्राद्ध जो नित्य-प्रतिदिन किये जाते हैं, उन्हें नित्य श्राद्ध कहते हैं. इसमें विश्वदेव नहीं होते हैं. 2.    नैमित्तिक या एकोदिष्ट श्राद्ध : वह श्राद्ध जो केवल एक व्यक्ति के उद्देश्य से किया जाता है. यह भी विश्वदेव रहित होता है. इसमें आवाहन तथा अग्रौकरण की क्रिया नहीं होती है...

શ્રી લલિતા સહસ્ત્રનામનો પાઠ

श्री ललिता सहस्त्रनाम का विशेष महत्व है,श्री ललिता सहस्त्रनाम के पाठ से इष्टदेवी प्रसन्न हो जाती है और उपासक की कामना को पूर्ण करती है,यदि उपासक नित्य पाठ न कर सके तो पूण्य दिवसों पर संक्रांति पर दीक्षा दिवस पर,पूर्णिमा पर,शुक्रवार को अपने जन्मदिवस पर, दक्षिणायन ,उत्तरायण के समय ,नवमी चतुर्दशी आदि को अवश्य पाठ करें।पूर्णिमा के दिन श्री चन्द्र बिम्ब में श्री जी का ध्यान कर पंचोपचार पूजा के उपरान्त पाठ करने से साधक के समस्त रोग नष्ट हो जाते है,और वह दीर्घ आयु होता है, हर पूर्णिमा को यह प्रयोग करने से ये प्रयोग सिद्ध हो जाता है।ज्वर से दुखित मनुष्य के सर पर हाथ रखकर पाठ करने से दुखित मनुष्य का ज्वर दूर हो जाता है, सहस्त्रनाम से अभिमंत्रित भस्म को धारण करने से सभी रोग नष्ट हो जाते है,इसी प्रकार सहस्त्रनाम से अभिमंत्रित जल से अभिषेक करने से दुखी मनुष्यो की पीड़ा शांत हो जाती है अथार्त किसी पर कोई ग्रह या भूत,प्रेत चिपट गया हो तो अभिमंत्रित जल के अभिषेक से वे समस्त पीड़ाकारक तत्व दूर भाग जाते है, सुधासागर के मध्य में श्री ललिताम्बा का ध्यान कर पंचोपचार पूजन करके पाठ सुनाने से सर्प आदि की विष प...

સિદ્ધ તિથિઓ.

सिद्ध तिथियां, रात्रियाँ और पर्व कुछ तिथियां अपने आप में ही महत्वपूर्ण एवं सिद्धिप्रद मानी गई है, जिनका ज्ञान शायद ही इक्के दुक्के सन्यासी, साधु या ज्योतिषी को होगा । नीचे मैं इन्ही महत्वपूर्ण तिथियों को स्पष्ट कर रहा हूँ, जिसका प्रयोग करने से साधना में स्वतः सिद्धि प्राप्त होती हैं । दस महाविद्या जयन्ति तिथियां १- काली  भाद्रपद कृष्ण अष्टमी २- तारा  चैत्र शुक्ल नवमी  ३- ललिता  माघ शुक्ल पूर्णिमा ४- भुवनेश्वरी  भाद्रपद शुक्ल द्वादशी  ५- भैरवी  मार्गशीर्ष शुक्ल पूर्णिमा ६- छिन्नमस्ता  वैशाख शुक्ल चतुर्दशी ७- धूमावती  ज्येष्ठ शुक्ल अष्टमी  ८- बगलामुखी  वैशाख शुक्ल चतुर्थी  ९- मातंगी  वैशाख शुक्ल चतुर्दशी १०- कमला  कार्तिक कृष्ण अमावस्या दस सिद्धविद्या जयन्ति तिथियां १- कुब्जिका  वैशाख कृष्ण त्रयोदशी की मध्य रात्रि को  २- चण्डिका  वैशाख शुक्ल पूर्णिमा  ३- मात्रा  मार्गशीर्ष कृष्ण चतुर्दशी  ४- सिद्धलक्ष्मी  वैशाख शुक्ल चतुर्दशी ५- सरस्वती  माघ शुक्ल पंचमी ६- अन्नपूर्णा  मार्गशी...

ganga stotram

*पाप मोचिनि गंगा स्त्रोत्रम्* देवि सुरेश्वरि भगति गंगे त्रिभुवनतारिणि तरलतरंगे । शंकरमौलिविहारिणि विमले मम मतिरास्तां तव पदकमले ।।1।। भागीरथि सुखदायिनि मातस्तव जलमहिमा निगमे ख्यात: । नाहं जाने तव महिमानं पाहि कृपामयि मामज्ञानम ।।2।। हरिपदपाद्यतरंगिणि गंगे हिमविधुमुक्ताधवलतरंगे । दूरीकुरू मम दुष्कृतिभारं कुरु कृपया भवसागरपारम ।।3।। तव जलममलं येन निपीतं परमपदं खलु तेन गृहीतम । मातर्गंगे त्वयि यो भक्त: किल तं द्रष्टुं न यम: शक्त: ।।4।। पतितोद्धारिणि जाह्रवि गंगे खण्डितगिरिवरमण्डितभंगे । भीष्मजननि हेमुनिवरकन्ये पतितनिवारिणि त्रिभुवनधन्ये ।।5।। कल्पलतामिव फलदां लोके प्रणमति यस्त्वां न पतति शोके । पारावारविहारिणि गंगे विमुखयुवतिकृततरलापांगे ।।6।। तव चेन्मात: स्रोत: स्नात: पुनरपि जठरे सोsपि न जात: । नरकनिवारिणि जाह्रवि गंगे कलुषविनाशिनि महिमोत्तुंगे ।।7।। पुनरसदड़्गे पुण्यतरंगे जय जय जाह्रवि करूणापाड़्गे । इन्द्रमुकुट मणिराजितचरणे सुखदे शुभदे भृत्यशरण्ये ।।8।। रोगं शोकं तापं पापं हर मे भगवति कुमतिकलापम । त्रिभुवनसारे वसुधाहारे त्वमसि गतिर्मम खलु संसारे ।।9।। अलकानन्दे परमानन्दे कुरु करुणामयि ...

आरती, स्त्रोत्र की महिमा ।। शास्त्री जी ।।

🌹🌹🌹🌹आरती, स्त्रोत्र की महिमा आरती को आरात्रिक , आरार्तिक अथवा नीराजन भी कहते हैं। पूजा के अंत में आरती की जाती है। जो त्रुटि पूजन में रह जाती है वह आरती में पूरी हो जाती है।  स्कन्द पुराण में कहा गया है- मन्त्रहीनं क्रियाहीनं यत् कृतं पूजनं हरे:। सर्वं सम्पूर्णतामेति कृते निराजने शिवे।। अर्थात - पूजन मंत्रहीन तथा क्रियाहीन होने पर भी नीराजन (आरती) कर लेने से उसमे सारी पूर्णता आ जाती है।  आरती करने का ही नहीं, देखने का भी बड़ा पूण्य फल प्राप्त होता है। हरि भक्ति विलास में एक श्लोक है-  नीराजनं च यः पश्येद् देवदेवस्य चक्रिण:। सप्तजन्मनि विप्र: स्यादन्ते च परमं पदम।। अर्थात - जो भी देवदेव चक्रधारी श्रीविष्णु भगवान की आरती देखता है, वह सातों जन्म में ब्राह्मण होकर अंत में परम् पद को प्राप्त होता है।  श्री विष्णु धर्मोत्तर में कहा गया है-  धूपं चरात्रिकं पश्येत काराभ्यां च प्रवन्देत। कुलकोटीं समुद्धृत्य याति विष्णो: परं पदम्।। अर्थात - जो धुप और आरती को देखता है और दोनों हाथों से आरती लेता है, वह करोड़ पीढ़ियों का उद्धार करता है और भगवान विष्णु के परम पद को प्राप्त ...