mantr shlok यज्ञोपवीत।by spiritual shastri
॥ यज्ञोपवीतपरिवर्तनम् ॥
यज्ञोपवीत को व्रतबन्ध भी कहते हैं। यह व्रतशील जीवन के उत्तरदायित्व का बोध कराने वाला पुण्य प्रतीक है। विशेष यज्ञ संस्कार आदि आयोजनों के अवसर पर उसमें भाग लेने वालों का यज्ञोपवीत बदलवा देना चाहिए। साप्ताहिक यज्ञों में यह आवश्यक नहीं। नवरात्रि आदि अनुष्ठानों के सङ्कल्प के समय यदि यज्ञोपवीत बदला गया है, तो पूर्णाहुति आदि में फिर न बदला जाए। व्यक्तिगत संस्कारों आदि में प्रमुख पात्रों का, बच्चों के अभिभावकों आदि का यज्ञोपवीत बदलवा देना चाहिए। यदि वे यज्ञोपवीत पहने ही न हों, तो कम से कम कृत्य के लिए अस्थाई रूप से पहना देना चाहिए। वे चाहें तो स्थाई भी करा लें।
यज्ञोपवीत बदलने के लिए यज्ञोपवीत का मार्जन किया जाए। यज्ञोपवीत संस्कार की तरह पाँच देवों का आवाहन-स्थापन उसमें किया जाए फिर यज्ञोपवीत धारण मन्त्र के साथ साधक स्वयं ही पहन लें। पुराना यज्ञोपवीत दूसरे मन्त्र के साथ सिर की ओर से ही उतार दिया जाए। पुराने यज्ञोपवीत को जल में विसर्जित कर दिया जाता है अथवा पवित्र भूमि में गाड़ दिया जाता है।
।। यज्ञोपवीतधारणम् ॥
निम्न मन्त्र बोलकर नया यज्ञोपवीत धारण करना चाहिए।
ॐ यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं, प्रजापतेर्यत्सहजं पुरस्तात् ।
आयुष्यमग्र्यं प्रतिमुञ्च शुभ्रं, यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेजः ।।
॥ जीर्णोपवीत विसर्जनम् ।।
निम्न मन्त्र पाठ करते हुए पुराना यज्ञोपवीत गले में से ही निकालना चाहिए ।
ॐ एतावद्दिनपर्यन्तं, ब्रह्म त्वं धारितं मया ।
जीर्णत्वात्ते परित्यागो, गच्छ सूत्र यथा सुखम् ॥
#yajnopavitadhaaranam #JeernopavitVisarjanam
#Sanskrit #Sanskritkauday #education
#sanskritlearning #sanskritlanguage #संस्कृतकाउदय #संस्कृत
Shastri ji Bhavnagar
Comments