*क्यों जरूरी है कर्मकांड?*

*क्यों जरूरी है कर्मकांड?*
वेदों के दो मुख्य कर्मकांड और ज्ञानकांड है। जिसमें संहिता और ब्राह्मण भाग कर्मकांड विभाग है और आरण्यक तथा उपनिषद ज्ञानकांड विभाग है। वे एक दूसरे के पूरक है।

कर्मकांड जहां सकाम निष्काम कर्म से भोग प्राप्त कराता है तो ज्ञानकांड कर्म के निषेध से मोक्ष। यह सम्भव ही नहीं कि बिना कर्मकांड के आप ज्ञानकांड तक पहुंच पाए। कारण के कर्मकांड विभाग में नित्य नैमित्तिक काम्य निष्काम आदि कर्मविभाग कहा है जिसके माध्यम से मनुष्य चित्तशुद्धि कर के ज्ञानमार्ग अर्थात ज्ञानकांड का अधिकारी बनता है। जहां कर्मकांड जिसे वेदपूर्वभाग भी कहते है वो विधिपरक है, और ज्ञानकांड जिसे वेदांत कहते है वो निषेध परक। सीधे ज्ञानकांड की बातें करने वाले अधूरे घड़े आपको कभी नहीं समझाएंगे की क्या विधि है क्या निषेध है? अथवा क्यों विधि है क्यों निषेध है? जब तक गृहस्थ है तब तक विधि की मानना ही मानना है अर्थात नित्य नैमित्तिक कर्म करना ही करना है। क्योंकि जब आपको विधि का ज्ञान होगा तब आपको निषेध क्या करना है उसका ज्ञान होगा। सीधा ज्ञान सामान्य मनुष्यों के लिए असंभव है। अतः जो वेदमार्ग है वही विहित है कर्मकांड विभाग की कभी निंदा नहीं करनी चाहिए तथापि इसे आवश्यक मानना चाहिए।

कर्मकांड से देवों को तृप्ति मिलती है, जो प्रत्यक्ष है और परोक्ष भी। जैसे अग्नि देवता, जल देवता, वायु देवता, सूर्य देवता, इंद्र देवता आदि। जो आहुति डालते है वो इन इन देवों को मिलती है और इन सब देवों के माध्यम से परमात्मा ग्रहण करके तृप्त होते है।

श्रीमद्भगवद्गीता का कथन है। 

अहं हि सर्वयज्ञानां भोक्ता च प्रभुरेव च। गीता ९.२४
शांकरभाष्य : अहं हि सर्वयज्ञानां श्रौतानां स्मार्तानां च सर्वेषां यज्ञानां देवतात्मत्वेन भोक्ता च प्रभुः एव च। मत्स्वामिको हि यज्ञः।

अधियज्ञोऽहमेवात्र गीता ८.४
शांकरभाष्य : अधियज्ञः सर्वयज्ञाभिमानिनी विष्ण्वाख्या देवता यज्ञो वै विष्णुः इति श्रुतेः। स हि विष्णुः अहमेव अत्र अस्मिन् देहे यो यज्ञः तस्य अहम् अधियज्ञः यज्ञो हि देहनिर्वर्त्यत्वेन देहसमवायी इति देहाधिकरणो भवति देहभृतां वर।

ईश्वर यज्ञ के अधिपति है, देवता स्वयं ग्रहण कर परमात्मा को तृप्त कर के कर्म को फलदायी बनाते है,और यजमान को यथोचित विधिनिषेध का पालन कर के जो यज्ञ किया गया है उसका फल मिलता है।

श्रीमन्नारायण 💐
लेखन : पं.हिरेनभाई त्रिवेदी,क्षेत्रज्ञ 
श्रीवैदिकब्राह्मणः🚩गुजरात
परमधर्मसंसद१००८

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