काली भेद

काली के भेद........


काली के अलग - अलग तंत्रों में अनेक भेद हैं । अष्ट काली के भेद इस प्रकार हैं -

१. संहार-काली,

२. दक्षिण-काली,

३. भद्र-काली,

४. गुह्य-काली,

५. महा-काली,

६. वीर-काली,

७. उग्र-काली तथा

८. चण्ड-काली ।

                ‘कालिका-पुराण’ में उल्लेख हैं कि आदि-सृष्टि में भगवती ने महिषासुर को “उग्र-चण्डी” रुप से मारा एवं द्वितीयसृष्टि में ‘उग्र-चण्डी’ ही “महा-काली” अथवा महामाया कहलाई गयी है ।

         योगनिद्रा महामाया जगद्धात्री जगन्मयी । 

         भुजैः षोडशभिर्युक्ताः 

           इसी का नाम “भद्रकाली” भी है । भगवती कात्यायनी ‘दशभुजा’ वाली दुर्गा है । उसी को “उग्र-काली” कहा गया है । 

कालिकापुराणे – 

         कात्यायनीमुग्रकाली दुर्गामिति तु तांविदुः । 

             “संहार-काली” की चार भुजाएँ हैं यही ‘धूम्र-लोचन’ का वध करने वाली हैं । “वीर-काली” अष्ट-भुजा हैं, इन्होंने ही चण्ड का विनाश किया था ।         

           “भुजैरष्टाभिरतुलैर्व्याप्याशेषं वमौ नमः” 

                   इसी ‘वीर-काली’ विषय में दुर्गा-सप्तशती में कहा हैं । “चण्ड-काली” की बत्तीस भुजाएँ हैं एवं शुम्भ का वध किया था । 

यथा – चण्डकाली तु या प्रोक्ता द्वात्रिंशद् भुज शोभिता ।

                समयाचार रहस्य में उपरोक्त स्वरुपों से सम्बन्धित अन्य स्वरुप भेदों का वर्णन किया है ।

              संहार-काली – 

              १. प्रत्यंगिरा, २. भवानी, ३. वाग्वादिनी, ४. शिवा, ५. भेदों से युक्त भैरवी, ६. योगिनी, ७. शाकिनी, ८. चण्डिका, ९. रक्तचामुण्डा 

            से सभी संहार-कालिका के भेद स्वरुप हैं । संहार कालिका का महामंत्र १२५ वर्ण का ‘मुण्ड-माला तंत्र’ में लिखा हैं, जो प्रबल-शत्रु-नाशक हैं ।

              दक्षिण-कालिका -ः

           १. कराली, २. विकराली, ३. उमा, ४. मुञ्जुघोषा, ५. चन्द्र-रेखा, ६. चित्र-रेखा, ७. त्रिजटा, ८. द्विजा, ९. एकजटा, १०. नीलपताका, 

               बत्तीस प्रकार की यक्षिणी, तारा और छिन्नमस्ता ये सभी दक्षिण कालिका के स्वरुप हैं ।

              भद्र-काली - 

             १. वारुणी, २. वामनी, ३. राक्षसी, ४. रावणी, ५. आग्नेयी, ६. महामारी, ७. घुर्घुरी, ८. सिंहवक्त्रा, ९. भुजंगी, १०. गारुडी, ११.आसुरी-दुर्गा 

              ये सभी भद्र-काली के विभिन्न रुप हैं ।

             श्मशान-काली – 

             भेदों से युक्त १. मातंगी, २. सिद्धकाली, ३. धूमावती, ४. आर्द्रपटी चामुण्डा, ५. नीला, ६. नीलसरस्वती, ७. घर्मटी, ८. भर्कटी, ९. उन्मुखी तथा १०. हंसी 

            ये सभी श्मशान-कालिका के भेद रुप हैं ।

                महा-काली -ः 

              १.  महामाया, २. वैष्णवी, ३. नारसिंही, ४. वाराही, ५. ब्राह्मी, ६. माहेश्वरी, ७. कौमारी, इत्यादि अष्ट-शक्तियाँ है, भेदों से युक्त-धारा, गंगा, यमुना, गोदावरी, नर्मदा इत्यादि सब नदियाँ महाकाली का स्वरुप हैं ।

               उग्र-काली -ः 

            १.  शूलिनी, २. जयरुप-दुर्गा, ३. महिषमर्दिनी दुर्गा, ४. शैल-पुत्री, ५. नव-दुर्गाएँ, 6. भ्रामरी, ७. शाकम्भरी, ८. बंध-मोक्षणिका 

               ये सब उग्रकाली के विभिन्न नाम रुप हैं ।

               वीर-काली - १. श्रीविद्या, २. भुवनेश्वरी, ३. पद्मावती, ४. अन्नपूर्णा, ५. रक्त-दंतिका, ६. बाला-त्रिपुर-सुंदरी, ७. षोडशी की एवं काली की षोडश नित्यायें, ८. कालरात्ति, ९. वशीनी, १०. बगलामुखी ये सभी वीरकाली के नाम भेद हैं ।

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