કુંભ વિવાહ અર્ક વિવાહ
कुम्भविवाह एवं अर्कविवाह में केवल द्विजसंतानों का ही एकमात्र अधिकार हैं , न व्रात्य,न शाखारण्ड,न कुण्ड,न गोलक, न संकरजाति, न शूद्रों , न गोत्रविस्मृतों का,न समानगोत्रप्रवरगण में विवाहित मातापिता की संतानों को अधिकार हैं। विषाख्यदोष , बालवैधव्यदोष , तृतीयमानुषीजन्य विवाहदोष परिहारार्थ अन्य भी उपाय धर्मसिन्धु में प्राप्त हैं जैसे कि कुम्भविवाह के बदले में - विष्णुप्रतिमादान,अविवाहित कन्याओं का भी वटसावित्रीव्रत एवं हरितालिकाव्रत में अधिकार । आजकल जो पौराणिककर्मकाण्ड सूचक विवाहचन्द्रिका आदि में दीये हुए पौराणिक कुम्भविवाह एवं अर्कविवाह केवल कल्पनामात्र हैं न कि द्विजेतरों के अधिकारपक्ष में एवं कुम्भविवाह में द्विजकन्याओं का भी १०वर्ष की उम्र के बाद अधिकार नहीं रहता १०वर्ष के बाद सप्रायश्चित्त सकर्णवेधान्त कुम्भविवाह की विधा भिन्न प्रकार से हैं। तृतीयमानुषीजन्यविवाहदोषपरिहारार्थ शताङ्गायुर्मन्त्रजपान्ते विवाह कर सकते हैं।
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